दोस्तों, आप मुझे तो जानते ही होंगे, मैं अन्तर्वासना का पुराना लेखक हूँ। मैंने अब तक करीब 200 कहानियाँ इस मंच पर लिखी हैं। आज मैं इस नई साइट पर एक पाठक द्वारा भेजी गई कहानी को अपने अंदाज़ में पेश करने जा रहा हूँ। इस पाठक ने अपनी कहानी अपने ढंग से लिखकर भेजी थी, लेकिन मैंने उनसे बातचीत कर इसे और भी रुचिकर बना दिया है।
तो आइए, पढ़िए।
दोस्तों, मेरा नाम श्याम सुंदर है, और इस वक्त मेरी उम्र 50 साल है। मेरे परिवार में मेरी पत्नी और मेरा बेटा, बस यही हैं।
कुछ समय पहले मेरी पत्नी की एक नई दोस्त बनी। वो औरत हमारे मोहल्ले की तीसरी गली में रहती है। दोस्ती की वजह ये थी कि मेरी पत्नी और उस औरत, दोनों का नाम सीता है। उस औरत सीता की दो बेटियाँ हैं, बड़ी बेटी प्रिया 20 साल की है, और छोटी बेटी अनु 18 साल की। छोटी बेटी अनु पतली-दुबली और साँवली है, जबकि बड़ी बेटी प्रिया भी पतली है, लेकिन गोरी और खूबसूरत है। वो अभी बी.ए. की पढ़ाई कर रही है।
सीता का पति पहले यहीं रहता था, और दोनों पति-पत्नी छोटे-मोटे काम करके गुज़ारा करते थे, जिससे घर की हालत कुछ खास नहीं थी। फिर सीता के पति को विदेश जाने का मौका मिला, और वो कमाने के लिए विदेश चला गया।
वैसे तो हमारे घरों में एक-दूसरे का आना-जाना था, लेकिन जब से सीता का पति विदेश गया, मुझे सीता में कुछ खास आकर्षण दिखने लगा। रंग-रूप या शारीरिक बनावट में वो मेरी पत्नी से कहीं बेहतर नहीं थी, लेकिन पराई औरत का आकर्षण ही अलग होता है। भले ही वो खूबसूरत न हो, उसके मम्मे, उसकी गाँड, उसकी फुद्दी आपको अपनी ओर खींच ही लेती है।
मेरे मन में कई बार ख्याल आया कि सीता को थोड़ा टटोलकर देखूँ। उसका पति पास नहीं है, तो रात में वो भी बिस्तर पर तड़पती होगी। अगर बात बन गई, तो बाहर मुँह मारने का मौका मिल सकता है।
हालांकि मैं उसके घर कम ही जाता था, अपने काम-धंधे में व्यस्त रहता था, लेकिन कभी-कभार आना-जाना हो जाता था, या वो हमारे घर आ जाती थी। मेरी पत्नी के साथ उसकी अच्छी दोस्ती थी। वो मेरी पत्नी को दीदी और मुझे जीजाजी कहती थी। मैंने कभी साली कहकर उसके साथ मज़ाक नहीं किया, मैं थोड़ा संयमित ही रहता था। हाँ, उसकी बेटियों से मैं हँस-बोल लेता था।
उसके पति के विदेश जाने के बाद सीता ने कई बार घर के कामों में मेरी मदद माँगी, लेकिन मैंने खुद कभी पहल नहीं की। मेरी पत्नी ही हमारे बीच की कड़ी थी। सारी बातचीत उसी के ज़रिए होती थी।
लेकिन मैंने गौर किया कि सीता का व्यवहार अब बदलने लगा था। जब भी मौका मिलता, वो जीजाजी कहकर मुझसे खूब हँसी-मज़ाक करती। मुझे लगता कि वो अपनी आँखों, बातों और हाव-भाव से ये जताने की कोशिश कर रही थी कि जीजाजी, हिम्मत करो, मुझे पकड़ लो, मैं मना नहीं करूँगी।
लेकिन मैं अपनी पत्नी के सामने उसे कैसे पकड़ सकता था? वो भी समझती थी कि जब तक हम अकेले नहीं मिलेंगे, हमारे बीच कुछ नहीं हो सकता। लेकिन अकेले मिलने का कोई मौका नहीं मिल रहा था।
हमारी दोस्ती, या यूँ कहें कि दिल में छुपा प्यार, इसी तरह चल रहा था। मन में हम दोनों तड़प रहे थे। मैं कम, वो ज़्यादा। उसने कई बार कह भी दिया था, “जीजाजी, आपके पास कार है, मुझे ड्राइविंग सिखाइए। जीजाजी, किसी दिन हम दोनों कोई फिल्म देखने चलें। मेरी तो इच्छा है कि बारिश हो रही हो, और हम दोनों जीजा-साली कहीं दूर तक कार में घूमने जाएँ।”
ये सारी बातें उसने मेरी पत्नी के सामने यूं ही कह दी थीं, और इन्हीं बातों से मेरे मन में ये ख्याल आया कि शायद वो मुझसे अकेले मिलने का बहाना ढूँढ रही है।
फिर एक दिन उसने और बड़ा बयान दे दिया।
हुआ यूँ कि हम बाज़ार गए थे, वहाँ वो अपनी दोनों बेटियों के साथ मिल गई। औपचारिकता के तौर पर हमने उन्हें रात के खाने का न्योता दे दिया।
वो तुरंत मान गई।
हम एक मिठाई की दुकान पर गए, जहाँ ऊपर उनका रेस्टोरेंट था। वहाँ सब कुछ शाकाहारी था। हमने वहाँ बैठकर खाना खाया।
प्रिया मेरे पास बैठी थी, जबकि सीता, उसकी छोटी बेटी अनु, और मेरी पत्नी मेरे सामने बैठी थीं।
प्रिया को मुझसे वैसे भी बहुत लगाव था।
हम दोनों चुपचाप खाना खा रहे थे, तभी सीता बोली, “देखो, दोनों एक ही अंदाज़ में खाना खा रहे हैं, जैसे प्रिया तुम्हारी बेटी हो।”
मैंने कहा, “हाँ, मेरी बेटी ही है।”
और मैं क्या कहता?
लेकिन तभी सीता बोली, “तुम्हारी बेटी कैसे हो सकती है? हम तो कभी मिले ही नहीं!”
मैं तो सन्न रह गया। मिले नहीं, यानी सेक्स नहीं किया। मैंने सोचा, अरे, ये तो चुदवाने के चक्कर में है, और मैं शराफत में मारा जा रहा हूँ।
उस वक्त मैंने सिर्फ़ हाथ उठाकर आशीर्वाद देने का नाटक किया और कहा कि प्रिया मेरे आशीर्वाद से पैदा हुई बेटी है।
तब प्रिया बोली, “मौसा जी, अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपको पापा कहूँ?”
उसकी इस प्यारी-सी गुज़ारिश को मैं कैसे मना कर सकता था? मैंने कहा, “हाँ, बेटी, मुझे तो खुशी होगी। मेरी कोई बेटी नहीं है, तुम मेरी बेटी बन जाओ।”
उस दिन के बाद प्रिया मुझे हमेशा पापा कहने लगी। लेकिन छोटी बेटी अनु कभी पापा कहती, कभी मौसा जी। उसके साथ मेरा रिश्ता सामान्य-सा ही था, क्योंकि वो ज़्यादा चुप रहती थी।
फिर एक दिन प्रिया ने मुझसे मेरा फोन नंबर माँगा। इसके बाद वो कभी-कभी फोन करती, सुबह-शाम मेसेज भेजती, और मैं भी उसे अच्छे-अच्छे मेसेज भेजता, जैसा कोई पिता-बेटी करते हैं।
एक रविवार को मैं और मेरी पत्नी उनके घर गए। उस दिन सबने सिर धोया था। फिर प्रिया तेल लेकर आई, और तीनों माँ-बेटियाँ एक-दूसरे के सिर में तेल लगाने लगीं।
मैंने यूं ही कहा, “वाह, प्रिया, तुम तो कमाल का तेल लगाती हो!”
वो बोली, “पापा, आपके भी लगा दूँ?”
मैंने कहा, “हाँ, लगा दो।”
जब उनका काम खत्म हुआ, प्रिया तेल की शीशी लेकर मेरे पास आई। मैं उनके दीवान पर बैठा था। वो मेरे पीछे खड़ी होकर कटोरी से तेल लेकर मेरे बालों में लगाने लगी।
“आहह… हह… आहा…” कितना सुकून मिला, जब बेटी ने अपने नरम हाथों से पिता के सिर में तेल लगाया।
सीता बोली, “अरे जीजाजी, मैं आपके सिर में तेल लगा दूँ?”
उसकी बात में तंज़ था, लेकिन मैंने कहा, “नहीं, शुक्रिया, बेटी बहुत अच्छा लगा रही है।”
उसके बाद हमने उनके घर खाना खाया।回去时,सीता ने अपनापन दिखाने के लिए पहले मुझे नमस्ते कहा, फिर आगे बढ़कर गले लगाया। गले लगाते वक्त उसने अपना मम्मा मेरी बगल से अच्छे से रगड़ दिया और शरारती मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा।
वो साफ़-साफ़ इशारे कर रही थी कि आओ, मुझे पकड़ो, लेकिन मैं ही ढीला पड़ रहा था।
मैंने सोचा, अब अगर एक और मौका मिला, तो सीता से बात कर लूँगा।
फिर एक दिन मौका मिला। वो हमारे घर आई थी, और मेरी पत्नी रसोई में थी। मैंने पूछा, “अरे सीता, तुमने मेरा नंबर तो लिया था, लेकिन कभी फोन नहीं किया?”
वो बोली, “आप तो वैसे ही कम बोलते हो, पता नहीं फोन पर बात करोगे भी या नहीं।”
मैंने कहा, “अरे नहीं, मैं तो इंतज़ार कर रहा था कि कोई हैलो, नमस्ते, गुड मॉर्निंग, आई लव यू, कुछ तो मेसेज करो।”
वो हँस पड़ी और बोली, “अच्छा, अब करूँगी।”
अगले दिन सुबह उसका गुड मॉर्निंग का मेसेज आया। मैंने भी जवाब में गुड मॉर्निंग भेजा। उसी दिन हमने करीब 40 व्हाट्सएप मेसेज एक-दूसरे को किए।
जितना मैं खुला, वो उससे ज़्यादा खुल गई। जीजा-साली के रिश्ते की सारी मर्यादाएँ तोड़कर हमने खुल्लम-खुल्ला प्यार का इज़हार कर दिया। उसने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर मैं न कहता, तो वो खुद कहने वाली थी।
जब प्यार का इज़हार हो गया, तो और क्या बाकी था? वो पूरी तरह मेरे साथ सेट थी। मेरे मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे कि 50 की उम्र में भी माशूका पटा ली।
इसके बाद हम अक्सर फोन पर बातें करने लगे। दो-तीन दिन में बातें बिल्कुल साफ हो गईं। हमने एक-दूसरे से कह दिया कि जिस दिन भी मिलेंगे, अकेले में मिलेंगे, और उसी दिन सारी हदें पार कर देंगे।
मैंने सोचा, अब माशूका से मिलने जाना है, तो पूरी तैयारी के साथ जाऊँ। मैंने बुधवार के लिए अपने काम से एक दिन की छुट्टी पहले ही ले ली।
मंगलवार को मैंने आधी *** की गोली खा ली। इस गोली से जब चाहो, लंड आपके इशारे पर खड़ा हो जाता है, वो भी पत्थर की तरह सख्त। बस, ये यूरिक एसिड बढ़ा देती है, लेकिन इसका असर 2-3 दिन रहता है।
बुधवार सुबह मैंने चने के दाने जितनी अफीम की गोली कड़क चाय के साथ निगल ली। सफेद गोली लंड को खड़ा रखने के लिए, और काली देर तक न झड़ने के लिए।
हमारा मिलने का समय 11 बजे था, लेकिन मैं 10 बजे से पहले तैयार था। पौने 11 बजे मैंने सीता को फोन किया, “हाँ जी, साली साहिबा, क्या हाल हैं?”
वो बोली, “बढ़िया, आप सुनाओ।”
मैंने कहा, “सोच रहा था, सुबह-सुबह तुम्हारे दर्शन हो जाएँ, तो दिन अच्छा गुज़रे।”
वो बोली, “तो आ जाइए, किसने रोका है? आपका ही घर है।”
मैं उड़ता हुआ उसके घर पहुँचा। गेट खोलकर अंदर गया। वो रसोई में कुछ कर रही थी। मैंने आसपास देखा, घर में कोई और नहीं था। फिर भी, मैं रसोई में गया, उससे नमस्ते की, और बच्चों का हाल पूछा।
फिर पूछा, “बच्चे कहाँ हैं?”
वो बोली, “बड़ी कॉलेज गई, छोटी स्कूल। घर में बस मैं अकेली हूँ।”
यानी जो मैं जानना चाहता था, उसने खुद बता दिया।
वो गैस पर चाय बना रही थी। मैं उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। दिल चाह रहा था कि इसे अभी बाँहों में भर लूँ, लेकिन मन में थोड़ा डर था। फिर भी, मैंने हिम्मत करके उसे बाँहों में भर लिया।
वो चौंकी, “अरे जीजाजी, ये क्या कर रहे हो?”
वो गुस्सा नहीं हुई, तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई। मैंने झट से उसकी गर्दन पर दो-तीन चुंबन जड़ दिए और उसे कसकर चिपकाते हुए कहा, “उम्म्ह… अहह… हय… ओह… मेरी सीता, अब सब्र नहीं होता यार!”
मैंने उसकी गर्दन और कंधों को चूमते हुए उसका चेहरा घुमाया और गाल पर भी चूम लिया।
वो मुस्कुराकर बोली, “आप तो बड़े बेशर्म हो, छोटी साली तो बेटी जैसी होती है।”
कहानी का अगला भाग: पत्नी की दोस्त पर दिल धड़का-2
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