नमस्ते दोस्तों, मेरा नाम राहुल (बदला हुआ) है। मैं उत्तर प्रदेश के लखनऊ का रहने वाला हूँ। दिखने में मैं सामान्य कद-काठी का हूँ। आज मैं आपको अपने जीवन की एक सच्ची घटना बताने जा रहा हूँ, जो मेरे लिए एक नया मोड़ लेकर आई।
ये बात तब की है जब मैं बारहवीं में पढ़ रहा था और अपने मामा के घर पर रहता था। मुझे क्या पता था कि मैं वहाँ सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं, बल्कि एक ऐसे रिश्ते में बंधने जा रहा हूँ, जो मेरे जीवन को बदल देगा।
मेरे मामा की आर्थिक स्थिति थोड़ी कमजोर थी। उनके घर में दो कमरे थे—एक उनके बड़े बेटे और बहू के लिए, और दूसरा मामा, मामी और उनकी बेटियों के लिए। मामा की तीन बेटियों में सबसे बड़ी का नाम राधिका था। मैं उसे दीदी कहता था। राधिका बहुत खूबसूरत थी। उसकी मुस्कान, गुलाबी होंठ, और तीखे नैन-नक्श किसी को भी मोह लेते।
मैंने हमेशा उसे बहन ही माना। आखिर मामा की बेटी बहन ही होती है। लेकिन आसपास के लड़कों में उसे पाने की ललक देखकर मेरे मन में कुछ अलग ही खयाल आने लगे। हम सब भाई-बहन साथ में उठते-बैठते, लूडो खेलते। राधिका की हर हरकत में एक सादगी भरी खूबसूरती थी।
पढ़ाई के दौरान मैं कई लड़कियों से मिला, लेकिन राधिका को छूने का जो अहसास हुआ, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। मैं अक्सर उसे चिढ़ाता, और वो मुझे छोटा भाई समझकर तंग करती। हमारी ऐसी हल्की-फुल्की शरारतें चलती रहती थीं। राधिका मेरा बहुत खयाल रखती थी।
लूडो खेलते वक्त एक-दो बार उसका हाथ मेरे हाथ से छुआ, तो मुझे उसकी नरम त्वचा का अहसास हुआ। मैंने जानबूझकर खेल में चीटिंग शुरू की, ताकि पासा लेने के बहाने उसके हाथों को छू सकूँ। उसका शहरी लड़कियों जैसा कुरता और लेगिंग्स का पहनावा मुझे बहुत पसंद था। मेरी टाइट टी-शर्ट्स उसे मेरी फिटनेस दिखाती थीं।
धीरे-धीरे मेरा ध्यान उसके उभारों पर जाने लगा। लूडो खेलते समय मेरी नजरें उसके बूब्स और जांघों पर टिकने लगीं। उसकी जांघों का गदरायापन मुझे उंगलियाँ फिराने को मजबूर करता। उसका कसा हुआ कुरता और लेगिंग्स मुझे आकर्षित करने लगे।
एक दिन मैं मामा के अंदर वाले कमरे में सो रहा था। गर्मी के दिन थे। मामा के घर की हालत ऐसी थी कि नहाने का स्थान एक बंद दरवाजे के पीछे था, जो अंदर वाले कमरे के रास्ते से जुड़ा था। गर्मी की वजह से मेरी नींद खुल गई। मैं बाहर निकला, तो मेरी आँखें खुली रह गईं। राधिका नहा रही थी, और उसका पूरा नंगा जिस्म मेरे सामने था।
पानी उसके होंठों, गर्दन, मखमली बूब्स, पतली कमर, और जांघों से होता हुआ उसकी चूत तक बह रहा था। मैं उस पानी से जलने लगा। मैं भी उसके होंठ, गर्दन, बूब्स, नाभि, और चूत को छूना चाहता था। उसका गोरा जिस्म किसी मॉडल जैसा लग रहा था। मेरा लंड पैंट में तन गया। मैं उसकी जांघों के बीच हाथ डालकर उस मखमली अहसास को महसूस करना चाहता था।
अचानक राधिका का नहाना खत्म हुआ। मैं चुपके से कमरे में लौट आया। मैंने अपनी सोच पर काबू करने की कोशिश की, लेकिन उसका यौवन बार-बार मेरी वासना जगा देता। उसकी मुस्कान मेरे मन को भटकाती। मैं किसी तरह खुद को रोकता रहा।
गाँव की बिजली व्यवस्था खराब थी। बिजली सुबह और शाम को कुछ घंटों के लिए आती थी। मामा के घर में एक कमरे में एक तख्त और तीन चारपाइयाँ सटी हुई थीं। मैं राधिका की चारपाई के बगल वाले तख्त पर सोता था।
एक रात गर्मी की वजह से मेरी नींद खुल गई। मैं हाथ का पंखा चलाने लगा। राधिका ने पंखा ले लिया और मुझे हवा करने लगी। थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि उसका हाथ दर्द कर रहा होगा। मैंने पंखा लेने के लिए उसकी बांह पर हाथ रखा। उसकी नरम बांह छूकर मैं संकुचाया, लेकिन पंखा लेने के बहाने उसकी बांह पर उंगलियाँ फिराईं।
राधिका ने पंखा वापस लेने की जिद की, लेकिन मैंने उसकी हथेली में अपनी हथेली फँसाकर पंखा नहीं दिया। न मैंने उसका हाथ छोड़ा, न उसने छुड़ाया। मेरे अंदर उसे छूने की लालसा बढ़ रही थी। पूरी रात वो मेरे हाथ पर प्यार भरी थपकी देती रही, और मुझे नींद आ गई।
अक्सर रात में उसका हाथ मेरे हाथ में रहता, और उसके जिस्म को छूने की इच्छा बढ़ती जा रही थी। लेकिन एक रात मामी की वजह से मुझे तख्त छोड़कर दूसरी चारपाई पर जाना पड़ा, जो राधिका की चारपाई के विपरीत दिशा में थी। हमारे सिर एक-दूसरे की उलटी दिशा में थे। उस रात राधिका को सिरदर्द था।
मैंने उसका सिर दबाने को कहा। बहुत मनाने पर वो मानी। मैंने अपनी चारपाई से हाथ पीछे करके उसका सिर दबाना शुरू किया। पंद्रह मिनट बाद जब सब सो गए, मेरी उंगलियाँ उसके माथे से गालों तक पहुँचीं। उसके गाल रुई जैसे नरम थे। मैंने काफी देर तक उंगलियाँ फिराईं, फिर उसके गले तक गया।
मेरे शरीर में सनसनी फैल गई। तभी राधिका थोड़ा ऊपर खिसकी, और मेरी उंगलियाँ उसके गले से सरककर उसके बूब्स पर पहुँच गईं। मेरी उंगलियाँ काँपी, लेकिन वासना ने मुझे रोकने नहीं दिया। मैंने उसके एक बूब को हल्के-हल्के दबाना शुरू किया।
वासना बढ़ती गई, और मेरी पकड़ मजबूत होती गई। सूट के टाइट होने से दिक्कत हो रही थी, लेकिन अचानक सूट ढीला हो गया, और मेरा हाथ उसके बूब्स की घाटियों में घूमने लगा। तभी उसके होंठों ने मेरे हाथ को चूमा, और मेरा लंड उत्तेजना की चरम सीमा पर पहुँच गया।
मैं उसकी चारपाई पर पहुँच गया, ये भूलकर कि घर में और लोग भी थे। हवस ने मेरे दिमाग को बंद कर दिया था। राधिका ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मेरा सिर उसके मखमली बूब्स पर था। मैंने अपने मुँह को उसके उभारों में घुसाया। पहली बार उसके बूब्स को होंठों से छूने का आनंद असीम था।
मेरा लंड उसकी जांघों पर धक्के मार रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है। ये मेरा पहला अनुभव था। लेकिन राधिका को शायद कुछ तजुर्बा था। उसने मेरे बाल सहलाए और मेरा माथा चूमा। मुझे रास्ता दिख गया। मैंने अपने बदन को उसके बदन पर घसीटते हुए ऊपर किया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
उसके होंठ चाशनी जैसे थे। पहली बार चूम रहा था, तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। डर के साथ हम दोनों एक-दूसरे को चूस रहे थे। आवाजें बगल में सो रहे लोगों तक न पहुँचें, इसलिए सावधानी बरत रहे थे।
राधिका ने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ रखा था। मेरी छाती उसके बूब्स से सटी थी, और मेरा लंड उसकी जांघों में छेद करने को तैयार था। तभी उसने मेरा लंड छुआ। मेरे शरीर में आग-सी लग गई। मैंने उसके होंठ जोर से काट लिए। दर्द से उसकी हल्की-सी टीस निकली, लेकिन उसने आवाज दबा ली।
मैंने उसकी पजामी पर हाथ फेरा, और उसकी चूत की उभरी आकृति छू गई। पहली बार चूत छूने का अहसास कामुक था। मैंने उसकी चूत को पजामी के ऊपर से मसला, फिर पजामी नीचे खींचने की कोशिश की। राधिका ने अपनी गांड उठाकर मदद की। उसकी नंगी चूत पर मेरा हाथ लगा।
पहली बार नंगी चूत छूने से तूफान उठा। मैंने उसकी चूत में उंगली डाल दी। राधिका उचकी, लेकिन चुप रही। हम दोनों फूँक-फूँक कर कदम रख रहे थे। उसने मेरी पैंट की चेन खोली। मैं समझ गया कि वो मेरा लंड छूना चाहती है। मैंने लंड बाहर निकाला और उसके हाथ में दे दिया।
उसके नरम हाथ में लंड जाते ही सनसनी हुई। स्खलन होने वाला था, लेकिन मैंने उसका हाथ हटा दिया। राधिका समझ गई और दोबारा नहीं छुआ। मैंने उसकी गीली चूत से उंगली निकाली और मुँह में डाल ली। मुझे नहीं पता था कि ऐसा करते हैं, लेकिन जो हो रहा था, अपने आप हो रहा था।
अब मैं उसकी चूत को अपने लंड का रस देना चाहता था। मैंने उसके कान में फुसफुसाया, “अंदर डाल दूँ?”
उसने मेरी पीठ पर नाखून गड़ाकर हामी भरी। मैंने उसकी चूत को टटोला और लंड को उसकी योनि पर फेरा। मुझे नहीं पता था कि लंड कैसे डाला जाता है। पहली बार धक्का मारा, तो लंड फिसल गया। उसकी चूत और मेरा लंड दोनों गीले थे। दूसरी बार भी लंड फिसल गया।
राधिका ने मेरा लंड अपने नरम हाथ में पकड़कर उसकी चूत के द्वार पर सेट किया और मुझे अपनी ओर खींचा। मैंने धक्का मारा, और मेरा लंड उसकी चूत में घुस गया। “उम्म्ह… अहह… हय… ओह…” ममेरी बहन की चूत में लंड डालने का पहला अहसास आज भी याद आता है, तो मुठ मारने का मन करता है।
मैंने धीरे-धीरे अपने बदन को उसके बदन पर घिसना शुरू किया। धक्के लगाने का तरीका बाद में सीखा, लेकिन उस रात मैं उसकी चूत का रस पीना चाहता था। उसकी गर्म और गीली चूत में मैं दो मिनट भी नहीं टिक पाया। वीर्य निकला, तो ऐसा आनंद मिला, जो दुनिया में कहीं नहीं मिलता। मैंने सारा वीर्य उसकी चूत में खाली कर दिया।
मेरी साँसें तेज थीं, लेकिन राधिका शायद प्यासी रह गई। फिर भी उसने प्यार से मेरी पीठ सहलाई और अलग होने को कहा।
उस रात से हमारे बीच एक नया रिश्ता शुरू हुआ। एक दिन भाग्य ने साथ दिया, और हम घर में अकेले थे। मैंने उसकी चूत चाटी और चूसी। लेकिन उस दिन भी चुदाई पाँच मिनट से ज्यादा नहीं चली। धीरे-धीरे मैं पारंगत होता गया, और हम चुदाई का पूरा मजा लेने लगे।
हमने भागकर शादी करने तक का सोचा, लेकिन ऐसा हो न सका। मेरी पढ़ाई खत्म हुई, और मैं अपने घर लौट आया। राधिका के लिए मन में प्यास बनी रही। मैं बहाने बनाकर मामा के घर जाता। वो मेरी राह में पलकें बिछाए रहती। हम जब मिलते, तो सदियों के प्यासे प्रेमी जैसे मिलते।
फिर राधिका की शादी हो गई, और हमारा प्यार खत्म हो गया।
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