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भाभी की चूत चुदवाकर बदला लिया

मैंने अपनी भाभी की चूत चुदवाकर उनसे बदला लिया। मेरी गांड जलती थी, क्योंकि वह मेरी माँ से लड़ती थी और उनके चरित्र पर कीचड़ उछालती थी। तो आइए, इस गर्म कहानी का मज़ा लें!

दोस्तों, मैं आपकी दोस्त प्रिया हूँ। आप शायद मेरे बारे में कुछ कहानियों से जानते होंगे, जो पहले अन्तर्वासना पर छप चुकी हैं। लेकिन एक बात मैंने कभी नहीं बताई कि मैं बहुत जिद्दी औरत हूँ। अगर मुझे किसी से खुन्नस हो जाए, तो मैं उसे निकालने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हूँ। आज मैं आपको अपनी ऐसी ही एक खुन्नस की कहानी सुनाती हूँ।

हम तीन भाई-बहन हैं। मैं सबसे छोटी हूँ, और मेरे दोनों भाई बड़े हैं। दोनों की शादी हो चुकी है। बड़ा भाई दूसरी जगह रहता है, लेकिन छोटा भाई हमारे पैतृक घर में माँ के साथ रहता है। घर में सब तंदुरुस्त और हट्टे-कट्टे हैं, लेकिन मेरा छोटा भाई न जाने क्यों दुबला-पतला है। वह हर किसी से डरता है और बिल्कुल डरपोक है।

उसकी बीवी, यानी मेरी भाभी, बहुत खूबसूरत और तगड़ी है। शादी के बाद उसने भाई को अपने कब्जे में कर लिया। भाई तो बस उसका गुलाम बन गया।

जब मेरी शादी नहीं हुई थी, मेरा और भाई-भाभी का कमरा पास-पास था। हर रात मैं अपने कमरे में भाभी की सिसकारियाँ सुनती थी, जब भाई उनकी चूत को घंटों बजाता था। पता नहीं वह उनकी चुदाई करता था या चूत चाटता था, लेकिन भाभी की ‘हाय हाय’ की आवाजें रुकती नहीं थीं।

भाभी की सिसकारियाँ सुनकर मेरी चूत भी गीली हो जाती थी। फिर मुझे अपनी गर्म चूत को शांत करने के लिए कुछ न कुछ डालना पड़ता था—कभी उंगलियाँ, कभी बाल बनाने का ब्रश, कभी छुपाकर रखी मूली या गाजर।

एक और बात थी कि भाभी और माँ की कभी नहीं बनी। जब भी मौका मिलता, दोनों आपस में भिड़ जाती थीं। भाई हमेशा भाभी का पक्ष लेता, और माँ अकेली पड़ जाती थी। लेकिन माँ भी कम नहीं थीं। घर में उनका पूरा रौब था। बस यही भाभी थी, जिसने आकर माँ की सत्ता को चुनौती दी।

फिर मेरी शादी हो गई, और मैं ससुराल चली गई। अब जैसे भाभी की सिसकारियाँ निकलती थीं, वैसे ही मेरी निकलने लगीं।

समय बीता। एक बार मैं मायके गई थी। हमारे मोहल्ले में एक छोटा-सा धार्मिक स्थल है, जिसकी देखरेख एक मौलाना साहब करते हैं। वह मोहल्ले के घरों में चंदा इकट्ठा करते हैं और उससे जगह का रखरखाव करते हैं।

वह मौलाना हमारे घर भी आते थे। भाभी इस बात को मुद्दा बनाती थी। वह पहले कई बार मज़ाक में कह चुकी थी कि माँ का मौलाना से कुछ चक्कर है। जब भी वह आते, माँ उनकी खूब खातिरदारी करतीं, चाय बनाकर पिलातीं।

पहले तो भाभी यह बात मज़ाक में कहती थी, लेकिन एक बार माँ और भाभी की किसी बात पर लड़ाई हो गई। तब भाभी ने खुलेआम माँ पर इल्ज़ाम लगाया कि उनका मौलाना से चक्कर है और उनकी रंगीन मिज़ाजी अभी तक नहीं गई।

मुझे यह बात बहुत बुरी लगी। माँ तो रोने लगीं। बेटी होने के नाते मैंने माँ का पक्ष लिया। मेरे दिल में भाभी के लिए गुस्सा भर गया।

बाद में माँ ने मुझे बताया, “पता नहीं तेरा भाई इसे कहाँ से पसंद कर लाया। यह अपने उच्च वर्ग का रौब दिखाती है, सबको जलील करती है। मेरे, तेरे, और पूरे परिवार के बारे में अनाप-शनाप बोलती है। इस कुतिया ने जीना हराम कर रखा है।”

भाभी मुझे भी कभी-कभी ताने मारती थी, लेकिन इस बार उन्होंने माँ के चरित्र पर कीचड़ उछाला। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने ठान लिया कि यह जो अपने उच्च वर्ग पर इतना इतराती है और दूसरों से नफरत करती है, अगर मैं इसे किसी विधर्मी से चुदवा न दूँ, तो मेरा नाम भी प्रिया नहीं।

लेकिन सवाल था कि मैं इसे कैसे किसी के नीचे लेटाऊँ? और कोई मेरी बात क्यों मानेगा? फिर भी, मैंने सोचा कि अगर इसने मेरी माँ के दामन पर दाग लगाया, तो मैं इसकी शराफत को तार-तार करके ही चैन लूँगी।

शाम को मैं और माँ बाज़ार गईं। हमारे मोहल्ले में कई दुकानें हैं। एक दुकान है, नसीर खान की। वह औरतों का सामान बेचता है—लिपस्टिक, बिंदी, पाउडर, क्रीम, ब्रा, पैंटी, वगैरह। मैं उससे पहले से सामान लेती थी।

वह अक्सर मुझे घूरता था और कभी-कभी मज़ाक भी करता था। मतलब, ठरकी आदमी। उसका रंग काला, शक्ल बदसूरत, कोई खूबसूरती नहीं। लेकिन कद 6 फीट 2 इंच, चौड़ा सीना, पठानों जैसी कद-काठी। रंग-रूप छोड़ दें, तो लगता था कि अगर कोई औरत इसके नीचे लेटे, तो यह उसकी माँ चोद दे।

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मैं तो हमेशा से खूबसूरत रही हूँ। जब भी मैं उसकी दुकान से ब्रा-पैंटी लेने जाती, वह सामान पर हाथ फेरकर देता, जैसे सोच रहा हो कि यह ब्रा-पैंटी कल मेरे मम्मों और चूत से लिपटे होंगे।

खैर, ऐसा तो वह सबके साथ करता होगा। लेकिन मुझ पर वह कुछ ज़्यादा मेहरबान था।

जब भाभी ने माँ पर गंदा इल्ज़ाम लगाया, तो मेरी गांड जल गई। मैंने सोचा कि ऐसा कुछ करूँ कि भाभी मेरे सामने कभी सिर न उठा सके। उसे इतना जलील करूँ कि उसकी नज़र हमेशा नीची रहे। लेकिन कैसे?

एक दिन मैं घर में अकेली थी। बोर हो रही थी। अचानक मेरा हाथ मेरे मम्मों से फिसलकर सलवार में चला गया। चूत को सहलाया, तो मन बहकने लगा। एक उंगली चूत के अंदर चली गई।

मैंने सलवार का नाड़ा खोला और उंगली से चूत को अंदर-बाहर करने लगी। सोचने लगी कि आज किससे चुदवाऊँ। तभी नसीर खान का ख्याल आया—लंबा, चौड़ा, ताकतवर! उसे सोचकर मैं हस्तमैथुन करने लगी।

सचमुच, उसे सोचकर बड़ा मज़ा आया। जब चूत का पानी निकला और मैं शांत होकर लेटी, तो ख्याल आया कि अगर नसीर मेरी भाभी की चूत मारे, तो उसका मुँह बंद हो जाएगा, जो वह दूसरों से नफरत करती है। दूसरा, अगर भाभी मेरे सामने चुदे, तो वह मेरे सामने ज़ुबान नहीं खोलेगी। तीसरा, माँ पर लगाए इल्ज़ाम का बदला भी मिल जाएगा।

लेकिन सबसे बड़ी समस्या थी कि नसीर मेरी भाभी की चूत क्यों चोदेगा, वो भी मेरे कहने पर? भाभी उसे पसंद भी नहीं करती, तो वह उसे पास क्यों आने देगी?

फिर दिमाग में एक तरकीब आई। अगर मैं नसीर से सेट हो जाऊँ, तो वह मेरी चूत भी ठंडी करेगा। और अगर मैं उससे कहूँ कि वह भाभी को किसी तरह पटा ले, तो शायद बात बन जाए। यह मुश्किल काम था। अगर भाभी न पटी, तो मेरी तो पक्का फटेगी, क्योंकि नसीर मुझे नहीं छोड़ेगा। वह कहेगा, “तूने कहा था भाभी को पटा लूँ, वह नहीं पटी, तो तू आ मेरे नीचे।” लेकिन कोशिश तो करनी थी।

मैंने नसीर को लाइन देना शुरू किया। किसी न किसी बहाने से उसकी दुकान पर जाती। वह मुझ पर अपनी ठरक मिटाता, और मैं हँसकर उसकी बातों का जवाब देती।

कुछ ही दिनों में बात मज़ाक से छूने तक पहुँच गई। वह मेरे हाथ, बाजू, कंधे छू लेता। मैं ऐसे रिएक्ट करती, जैसे मुझे फर्क नहीं पड़ता।

एक दिन उसने हिम्मत करके मेरे मम्मों को छू लिया। छूना क्या, ब्रा दिखाते वक्त उसने ब्रा मेरे मम्मों पर रखी और पूरी फिटिंग करके दिखाई। इस बहाने उसने मेरे दोनों मम्मों को पकड़कर दबा दिया।

मैंने बुरा नहीं माना, तो उसने मुझे किसी दिन दोपहर में आने को कहा।

अगले दिन मैं भरी दोपहरी में उसकी दुकान पर चली गई। गर्मी के कारण दुकान में कोई ग्राहक नहीं था। मैं ब्रा देखने लगी। लेकिन आज नसीर ने बिना ब्रा लगाए मेरे मम्मों को पकड़कर खूब दबाया।

मैं जानबूझकर ड्रामा करती रही, “छोड़ दो, कोई देख लेगा, जाने दो, कोई आ जाएगा।”

लेकिन मेरी कमज़ोर दलीलों का उस पर कोई असर नहीं हुआ। उसने मेरे मम्मों को नींबू की तरह निचोड़ दिया और मेरी गांड, चूत, हर जगह हाथ फेरा। बोला, “अब सब्र नहीं होता, मेरी जान। किसी दिन मिल, तुझे जन्नत की सैर करवाऊँगा।”

मुझे पता था कि वह मुझे चोदने का जुगाड़ कर रहा है।

मैंने कहा, “ऐसे नहीं। मुझसे एक और काम भी करवाना है।”

वह बोला, “क्या काम?”

मैंने कहा, “मैं चाहती हूँ कि तुम पहले मेरी भाभी की चूत ठोको। फिर मैं तुम्हें सब कुछ दे दूँगी।”

वह बोला, “तेरी भाभी? उससे तेरी क्या दुश्मनी है कि तू उसे मुझसे चुदवाना चाहती है?”

मैंने कहा, “बस है। तुम बताओ, क्या कर सकते हो?”

वह बोला, “पक्का नहीं, लेकिन कोशिश कर सकता हूँ। लगता है उसे भी कुछ चाहिए। अगर वह मान गई, तो?”

मैंने कहा, “वह मान गई, तो मैं भी मान गई।”

वह बोला, “तो अभी के लिए कुछ और कर।”

मैंने कहा, “इतना तो नोच लिया मुझे।”

उसने पजामे में लंड हिलाते हुए कहा, “इसका कुछ इंतज़ाम कर।”

मैंने दुकान के बाहर देखा, फिर उसका लंड पजामे के ऊपर से पकड़कर दबाने लगी। मोटा-सा लंड थोड़ा दबाने से खड़ा हो गया। जब मैं छोड़ने लगी, तो नसीर ने मुझे पकड़ लिया।

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मैंने कहा, “मुझे जाने दो।”

वह बोला, “एक मिनट।”

कहकर उसने पजामे का नाड़ा खोला, लंड निकाला, और मुझे नीचे दबाने लगा। मैं समझ गई कि वह लंड चुसवाना चाहता है। मैंने उसका लंड मुँह में लिया, 5-7 बार ज़ोर से चूसा, और फिर छोड़कर भाग गई।

इससे उसे यकीन हो गया कि मैं उससे पट गई, और मुझे यकीन हो गया कि वह भाभी को पटा लेगा।

तीन महीने बाद, जब मैं उसकी दुकान पर गई, तो उसने कहा, “सुन, जाँघों पर तेल मल ले!”

मैंने पूछा, “क्यों?”

उसने अपने मोबाइल में कुछ तस्वीरें दिखाईं, जिनमें भाभी उसके साथ चूमाचाटी कर रही थी।

मैंने कहा, “नसीर भाई, अब एक काम करो। मेरी भाभी की चूत मेरे सामने ठोको। फिर जब कहोगे, मैं तुम्हारी।”

वह बोला, “दिक्कत क्या है? दोनों ननद-भाभी को एक साथ ठोक दूँगा। बता, पहले तू चुदेगी या तेरी भाभी?”

मैंने कहा, “पहले भाभी, मेरे सामने। फिर मैं तुम्हें पूरी रात दूँगी। वह रात मेरी सुहागरात होगी।”

जब एक खूबसूरत लड़की ऐसी पेशकश करे, तो कौन मना करेगा?

एक दिन नसीर ने कहा, “कल तेरा भाई बाहर जा रहा है। मैं तेरे घर आऊँगा, तेरी भाभी की चूत चोदने। बता, तू कल चुदेगी या बाद में?”

मैंने कहा, “पूरी रात दूँगी, नसीर भाई। बस मेरी भाभी की माँ-बहन एक कर दो। उसे खूब गालियाँ दो, मारो, तड़पाओ, जलील करो। यही मेरी ख्वाहिश है।”

वह मान गया।

अगले दिन दोपहर 12 बजे वह आया। मैं माँ के साथ बाज़ार गई थी। भाभी घर पर अकेली थी।

मैं माँ को उनकी सहेली के घर छोड़कर, यह कहकर कि “आप बात करो, मैं आधे घंटे में आती हूँ,” घर लौट आई।

भाभी की चूत चुद गई

घर पहुँची, तो भाभी के कमरे का दरवाज़ा बंद था। मतलब नसीर अंदर था।

थोड़ी देर में भाभी की सिसकारियाँ सुनाई दीं।

मैंने दरवाज़ा खटखटाया। नसीर ने खोला और मुझे अंदर खींच लिया। अंदर देखा, तो भाभी बिस्तर पर बैठी थी, शायद नंगी, क्योंकि बिस्तर के नीचे उनकी साड़ी, ब्रा, और पेटीकोट पड़े थे। नसीर भी पूरी तरह नंगा था। काला बदन, खतरनाक, जैसे कोई जल्लाद। उसका लंड और भी खतरनाक, जैसे काला नाग।

भाभी मुझे देखकर चौंकी, “प्रिया, तू कहाँ से आ गई?”

शायद वह मेरे सामने अपना राज़ नहीं खोलना चाहती थी।

नसीर बोला, “चिंता मत कर, मेरी जान। तेरे बाद इसकी चूत भी लेनी है।”

भाभी हैरान होकर बोली, “प्रिया, तू भी?”

मैंने मुस्कुराकर कहा, “क्या बताऊँ, भाभी। नसीर की बातों में जादू था। मैं खुद को रोक नहीं पाई। जब उसने तुम्हारा बताया, तो मैंने कहा, ‘भाभी बड़ी हैं, पहले उन्हें, फिर मुझे।’”

भाभी के चेहरे पर विश्वास की चमक आई, जैसे उन्हें लगा कि अगर मैं उनके सामने नंगी हो रही हूँ, तो वह भी नसीर से चुदवाएगी। मैंने भाभी को विश्वास में लेने के लिए अपनी सलवार उतार दी और सोफे पर बैठ गई।

नसीर भाभी के पास गया और चादर खींचकर उसे नंगी कर दिया। भाभी का बदन शानदार था—गोरा, बेदाग, चिकना। दो बच्चों की माँ, लेकिन किसी भी मर्द का ईमान बिगाड़ दे।

लेकिन अब वह किसी इंसान के सामने नहीं, बल्कि एक वहशी के सामने नंगी थी।

नसीर उसके ऊपर लेट गया, भाभी की टाँगें खोलीं, और अपना काला मोटा लंड उनकी गुलाबी चूत में घुसेड़ दिया।

भाभी इस अचानक हमले के लिए तैयार नहीं थी। शायद वह कुछ प्रेमालाप की उम्मीद में थी। लेकिन जब नसीर ने लंड डाला, तो भाभी की चीख निकल गई, “आह… नसीर भाई, धीरे!”

लेकिन उसे जैसे जन्नत की हूर मिल गई हो। वह जल्द से जल्द अपनी हवस मिटाना चाहता था। दो-चार घस्सों में उसने लंड भाभी की चूत में घुसा दिया। मोटा, लंबा, खुरदरा लंड देखकर भाभी खुश थी।

वह बोली, “नसीर, तेरा औज़ार तो बहुत तगड़ा है।”

नसीर बोला, “क्यों, तेरे खसम का छोटा है क्या?”

भाभी बोली, “छोटा भी, पतला भी, कमज़ोर भी। तू तो बहुत दमदार है!”

नसीर के चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी। वह बोला, “साली, अभी तूने मेरा दम कहाँ देखा? अभी तो सिर्फ पठान का लंड देखा। जब मैं जोश में आऊँगा, तो तेरी माँ चोद दूँ, तो कहना!”

वह भाभी की चूत में लंड अंदर-बाहर करने लगा। मोटे लंड की रगड़ से भाभी मस्ती में आ गई और सिसकारियाँ भरने लगी, वही सिसकारियाँ जो वह मेरे भाई के साथ चुदाई में करती थी।

उनकी चुदाई देखकर मेरी चूत भी गीली हो गई। मैंने टाँगें खोलकर उंगली करना शुरू कर दिया।

नसीर ने मुझे देखा और बोला, “तू क्यों उंगली कर रही है, मादरचोद? इधर आ, पठान का लंड देख। तेरी चूत का भोसड़ा न बना दूँ, तो कहना!”

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मैं बिस्तर पर उनके पास बैठ गई। नसीर ने मेरी कमीज़ का पल्ला उठाकर मेरी जाँघें और चूत नंगी कर दी। मेरी हल्की झाँट पर हाथ फेरकर बोला, “कमीज़ उतार!”

मैंने कमीज़ उतार दी। अब मेरे बदन पर सिर्फ ब्रा थी।

नसीर ने मेरे मम्मों पर हाथ फेरा और बोला, “क्या मुलायम माल है, साली। जैसी माँ मलाई, वैसी बेटी मक्खन!”

भाभी तुरंत बोली, “तो क्या, नसीर, तूने मम्मी जी को भी चोदा है?”

शायद वह माँ के खिलाफ कुछ ढूंढना चाहती थी, ताकि बाद में उसका इस्तेमाल कर सके।

नसीर बोला, “नहीं, मैंने इसकी माँ नहीं चोदी। लेकिन जब भी देखता हूँ, सोचता हूँ कि इतनी हसीन है, जवानी में क्या कयामत रही होगी। हाँ, मौका मिले, तो आज भी चोद दूँ।”

मैंने कहा, “पहले जिसे चोद रहे हो, उसे तो चोद लो।”

नसीर बोला, “ये अब कहाँ जाएगी? आज के बाद अगर यह अपने पति के पास भी गई, तो मेरा नाम बदल देना।”

भाभी बोली, “अच्छा जी, ऐसी क्या बात है तुझमें?”

नसीर बोला, “तो ले, साली छिनाल। अब देख, तेरी चीखें तेरी माँ को न सुनाई दें, तो कहना।”

उसके बाद नसीर ने भाभी की चूत को खूब पेला। इतनी ज़ोर से कि भाभी का गला चीख-चीखकर भर आया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। “नसीर, धीरे… नहीं… उम्म्ह… अहह… हाय… ओह… मर गई… मेरी माँ… बस रुक, कमीने… आह!”

लेकिन एक कमज़ोर औरत को नसीर ने इतनी मज़बूती से जकड़ रखा था कि भाभी हिल भी नहीं पा रही थी। वह सिर्फ रो रही थी, चीख रही थी। नसीर बेदर्दी से उसे चोद रहा था।

मुझे उसे देखकर डर लगने लगा कि जब यह मेरे ऊपर चढ़ेगा, तो मेरा क्या हाल करेगा।

भाभी जितना चीख रही थी, नसीर को उतना ही मज़ा आ रहा था। वह उसे और तकलीफ दे रहा था। “चीख, भैन की लौड़ी! तेरी माँ चोदूँ, साली कुतिया की औलाद। और शोर मचा। साली, रंडी की तरह ड्रामा करती है। किसने सिखाया तुझे चीखना? तेरी माँ ने या तेरी बहन ने? साली, वो भी ऐसी रंडियाँ हैं? बुला उन्हें भी। यहीं बिस्तर पर तेरी माँ चोदूँगा। तेरी बहन की गांड के चीथड़े उड़ा दूँगा। और ये तेरी ननद, इसकी चूत का फूल भी मैं ही खिलाऊँगा।”

वह भाभी और पूरे खानदान की औरतों को गालियाँ देता रहा।

उसकी चुदाई देखकर मुझे मज़ा आ रहा था। मैं पास बैठकर भाभी की चूत चुदाई देख रही थी और अपनी चूत में उंगली कर रही थी। पाँच मिनट में मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, लेकिन नसीर नहीं रुका।

भाभी ने कहा, “नसीर भाई, मेरा हो गया। तू भी अपना पानी गिरा दे।”

नसीर बोला, “अरे, रंडी की औलाद, अभी तो शुरू किया है। अभी तेरी माँ कहाँ चुदी? अभी तेरी चूत सफ़ेद पड़ी है, इसे लाल तो होने दे।”

कुछ देर और मैं उसकी चुदाई देखती रही, फिर कपड़े पहनने लगी।

नसीर बोला, “तू कपड़े क्यों पहन रही है?”

मैंने कहा, “मम्मी को लेने जाना है।”

वह बोला, “अरे, ये क्या बात हुई? अभी तो इस कुतिया को चोदने में मज़ा आने लगा था।”

लेकिन मैं चली आई। बाद में शायद नसीर भी चला गया।

जब मैं माँ को लेकर घर आई, तो भाभी अकेली थी। उसकी शक्ल देखकर लग रहा था जैसे किसी ने उसकी पिटाई की हो।

मैंने पूछा, “क्या हुआ, भाभी? तुम्हारी हालत तो खराब लग रही है।”

वह बोली, “पूछ मत। कहाँ पंगा ले लिया। तेरे जाने के बाद उसने मेरी पिटाई भी की। मैंने गुस्सा किया, तो साले ने ज़बरदस्ती पीछे गांड में डाल दिया। इतना दर्द हो रहा है, क्या बताऊँ।”

मैंने भाभी के दुख में साथ दिया, लेकिन अंदर ही अंदर खुश थी। साली, तूने मेरी माँ पर इल्ज़ाम लगाया था, देख उसका नतीजा—तेरी गांड फाड़ दी।

फिलहाल इतना ही। बाकी फिर कभी।

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