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अनजाने में सब कुछ हुआ – 2

उस स्वर्गीय सुख के चरम क्षण को छूकर दोनों शांत, निश्चल कुछ देर तक लेटे रहे। सागर ने भावना को अपनी बाहों में लिया और उसके गाल पर हल्के से हाथ फेरते हुए कहा, “भावना… बहुत प्यार करता हूं तुझसे ☺️।”

अनजाने में सब कुछ हुआ – 1

यह सुनते ही भावना ने लाड़ में उसकी नाक को अपनी उंगलियों में पकड़कर कहा, “हां रे पागल, मुझे पता है, मेरा भी यही हाल है। मैं भी कब तुझसे प्यार करने लगी, मुझे खुद नहीं पता।”

“क्या रे… सागर, मैं यहां से चली गई तो तू मुझे भूल तो नहीं जाएगा ना?” यह कहते ही सागर बोला, “नहीं ग पागल ☺️… अब वो मुमकिन नहीं। तेरे बिना मेरे जीवन में अब कोई और नहीं होगी।” “सच कह रहा है, मुझसे शादी करेगा ना? ☺️ या मम्मी-पापा की पसंद से किसी और से शादी करेगा?” सागर ने जवाब दिया, “तेरे सिवा मैं किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता, और किसी और से शादी तो बिल्कुल नहीं करूंगा।” यह सुनकर भावना ने उसे भरोसा दिलाया। “सच में?” कहते हुए सागर ने उसे अपनी बाहों में लिया और प्यार से उसकी नाक पर अपनी नाक रगड़कर हंस पड़ा। हंसते ही भावना बोली, “हां…” और सागर के होंठों पर चुम्बन देकर उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए उठने लगी।

लेकिन सागर ने उसे फिर से पास खींचकर कहा, “रुक ना… थोड़ा और।” भावना हंसते हुए बोली, “पागल, बस अब ☺️ कोई आ जाएगा।” और उसे भी तैयार होने को कहा। तैयार होते समय सागर उसे निहार रहा था। तभी भावना बोली, “क्या रे… ☺️☺️ क्या देख रहा है ऐसे?” सागर ने तुरंत जवाब दिया, “तेरी मनमोहक, अप्रतिम खूबसूरती।” “सच में रे… मैं इतनी सुंदर हूं?” उसने पूछा, तो सागर बोला, “हां ग… तू बहुत सुंदर है।” यह सुनकर भावना मन ही मन शरमा गई।

भावना कपड़े पहन रही थी, तभी सागर ने उसे पीछे से गले लगाकर कहा, “क्यों ग… तू इतनी प्यारी और मधुर है कि बस तुझे देखते रहने का मन करता है।” “बस बस, कितना मेरी तारीफ करेगा, अब बंद कर,” कहते हुए भावना ने हंसकर सागर को कमरे से बाहर जाने को कहा, “जा अब, कोई आ जाएगा, मैं बाहर आती हूं ☺️।” सागर को भी यह ठीक लगा और अनिच्छा से वह हॉल में जाकर बैठ गया।

तभी डोरबेल बजी। पड़ोस की काकू ने उनके लिए खाना बनाकर भेजा था। सागर ने खाना लिया और कहा, “ठीक है काकू, हम खा लेंगे।” काकू चली गईं। सागर ने भावना को आवाज़ दी, “खाना खाने आ, काकू ने खाना दिया है।” भावना बोली, “हां, आ रही हूं,” और नीचे आई। भावना ने बर्तन धोकर, पोंछकर दोनों के लिए थाली सजाई और खाने बैठ गए। सागर ने मज़ाक में कहा, “अरे बीवी, ज़रा पानी दे।” भावना हंसते हुए बोली, “हां देती हूं… नवरोबा।”

खाना खाने के बाद भावना ने बर्तन धोकर, पोंछकर जगह पर रख दिए। सागर ने भी उसकी मदद की। सब साफ-सुथरा करने के बाद दोनों टेरेस पर गप्पें मारने बैठ गए। काफी देर तक दोनों ने मन खोलकर बातें कीं। बातों-बातों में भावना भावुक होकर सागर से बोली, “अब मुझे जाना होगा रे 😞 सागर… हमारे प्यार का क्या होगा? हम कैसे और कब मिलेंगे? मुझे तुझ बिना नहीं चलेगा रे… तू मेरे जीवन का हिस्सा बन गया है।” सागर भी स्तब्ध हो गया। “हां ग… भावना, मेरा भी यही हाल है।” दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे, दोनों की आंखों में आंसू छलक आए।

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आने वाली जुदाई के ख्याल से दोनों की आंखों से आंसू गालों पर बहने लगे। सागर का स्वभाव नाज़ुक था, वह अपनी भावनाओं को रोक नहीं पा रहा था। उसने भावना की गोद में सिर रखकर अपने आंसुओं को बहने दिया। यह देखकर भावना उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए उसे हिम्मत देने लगी। उसने सागर का चेहरा अपने हाथों में लिया और उसके आंसू पोंछते हुए कहा, “अरे पागल, इतना रोता है? 😢 इतना नाज़ुक दिल है तेरा… मत रो। तुझे पता है क्या?”

“तेरे इसी नाज़ुक और साफ दिल की वजह से मैं तुझसे प्यार करने लगी रे ☺️।” यह सुनकर सागर ने अपने आंसू पोंछे और बोला, “हां… क्यों? ☺️” कुछ पल उसे देखते हुए उसने उसके हाथ अपने हाथों में लिए और हथेलियों पर अपने होंठ रखकर कहा, “आज सचमुच मुझे प्यार का मतलब और प्यार क्या होता है, समझ आया।” यह सुनकर भावना ने उसके माथे पर अपने नाज़ुक, कोमल होंठ रखे और बोली, “हां रे… सागर, आज मुझे भी प्यार की जादूगरी, उसकी खिंचाव समझ आया। ☺️ आय लव यू… 💓 सागर, मुझे अपने इस प्यार से कभी दूर मत करना।” सागर ने भी उसे भरोसा दिलाया, “तू तो मेरी सांस है ग… उसे कभी दूर कर सकता हूं क्या? पागल ☺️ आय लव यू टू 💓।”

यह कहकर दोनों हाथ में हाथ लेकर टेरेस से नीचे उतरने लगे। भावना बीच में रुक गई और उसने प्यार भरे अंदाज़ में हठ किया, “मुझे उठा ले।” सागर हंसते हुए बोला, “अरे हां… मैं तो भूल गया, तेरा पैर तो मोच आ गया है, तुझे चलना भी नहीं आता।” यह कहकर उसने उसे हल्के से उठा लिया। भावना सागर की आंखों में उनके खिलते हुए खूबसूरत रिश्ते को देख रही थी, इससे वह मन ही मन सुखी हो रही थी। सागर ने उसे सोफे पर बिठाया और खुद भी सोफे पर बैठ गया।

शाम हो चुकी थी, और शुभदा व बाकी सबके आने का वक्त हो गया था। भावना ने सागर से सहज ही पूछा, “अगर मैं खाना बनाऊं तो चलेगा? सब लोग सफर से थककर आएंगे, काकू और शुभदा को खाना बनाना पड़ेगा। काकू को बुरा तो नहीं लगेगा ना?” सागर हंसते हुए बोला, “☺️ तुझे खाना बनाना आता है?” भावना ने उसे हल्के से मारते हुए कहा, “हां… तुझे क्या लगा? मुझे कुछ नहीं आता? ☺️ सब खाना बनाना आता है।” यह कहकर वह किचन में चली गई और खाना बनाने लगी। सागर ने भी अपनी तरह से उसकी मदद की। डेढ़-दो घंटे में सबके लिए खाना तैयार हो गया। किचन को साफ करके भावना शुभदा के कमरे में आराम करने चली गई। सागर हॉल में टीवी देखने बैठ गया।

थोड़ी देर में सब लोग आ गए और फ्रेश होकर हॉल में जमा हुए, खाने की प्रतीक्षा में। शुभदा की मम्मी किचन में जाने लगीं, तभी शुभदा बोली, “मम्मी, खाना भावना ने बनाया है।” मम्मी को भावना की यह बात मन ही मन बहुत अच्छी लगी। शुभदा और भावना नीचे आईं और तीनों ने मिलकर सबको खाना परोसा। खाते समय सबने भावना के खाने की तारीफ की। सफर से सब थक गए थे, इसलिए खाना खाकर सब अपने-अपने कमरे में सोने चले गए।禁止

System: गए। सागर को भी अपनी रूम में जाकर सोने की कोशिश थी, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी।

इधर, शुभदा गप्पें मारते-मारते कब सो गई, उसे खुद नहीं पता चला। लेकिन भावना जाग रही थी। दो-तीन दिन में उसे भी जाना था, और सागर से फिर न मिल पाने की सोचकर वह शुभदा के गहरी नींद में सोने का इंतज़ार कर रही थी, क्योंकि उसे पता था कि शुभदा सुबह जल्दी उठती है। वह चुपके से सागर की रूम की ओर गई। सागर को दरवाज़ा खुला रखकर सोने की आदत थी, इसलिए वह चुपके से उसकी रूम में घुसी और धीरे से दरवाज़ा अंदर से बंद करके सागर के पास गई। हल्के से बिस्तर पर उसके पास बैठकर, उसके चेहरे पर धीरे से अपने बालों से गुदगुदी करके उसे जगाने की कोशिश की। सागर जैसे ही जागा और उसे अपने बिस्तर पर देखा, वह चौंककर उठ बैठा। उसे लगा कि यह सपना है या हकीकत। भावना ने उसे शांत होने को कहा और बताया कि सब गहरी नींद में हैं, चिंता करने की ज़रूरत नहीं। फिर उसने उसे सोने को कहा और उसके चेहरे पर अपने बालों की लट हल्के से फेरने लगी।

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भावना जो कर रही थी, उससे सागर सुखी हो रहा था। वह सागर के कान के पास आई और बोली, “अब… हम कब मिलेंगे, पता नहीं। मेरी याद के लिए आज मेरी तरफ से यह अनोखी भेट समझ।” यह कहकर उसने सागर के कान को हल्के से चूमा और खुद पहल करते हुए उस पर चुम्बनों की बौछार करने लगी। सागर को उसका यह नया रूप और सब कुछ सुखद लग रहा था। भावना उस पर सवार होकर अपने कोमल होंठों से उसके होंठों का लंबा स्वाद लेने लगी और उस परम सुख के शिखर तक पहुंचने तक दोनों स्वर्गीय सुख का आनंद ले रहे थे। चरम सुख के शिखर पर पहुंचने के बाद उसने सागर की ओर देखा, अपनी भौंहें उठाकर इशारा किया, “क्या? ☺️” और उसके बालों में प्यार से उंगलियां फेरते हुए उसकी बाहों में समा गई। कुछ देर तक दोनों ने गप्पें मारीं।

उसके गाल पर चुम्बन देकर वह बिस्तर से अपने कपड़े उठाकर खुद को संभालने लगी और जाने लगी। जाते समय भावना की आंखें नम हो गई थीं। सागर खड़ा होकर उसे जाते हुए देख रहा था। दरवाज़े तक पहुंचकर उसने पलटकर देखा और फिर दौड़कर वापस आकर सागर को जोर से गले लगाया। सागर ने भी उसे अपनी बाहों में लिया और उसके माथे पर अपने होंठ रखे। फिर उसने उसे हल्के से उठाकर दरवाज़े तक पहुंचाया, पहले बाहर का जायजा लिया और उसे जाने का इशारा किया। भावना ने भी जल्दी से जायजा लेकर शुभदा की रूम में आकर बिस्तर पर चुपचाप लेट गई। इधर सागर भी बिस्तर पर लेटा था। उसकी पहली मुलाकात से लेकर इस पल तक सब कुछ उसके सामने किसी फिल्म की तरह तैर गया। सुबह होने को थी, लेकिन वह जागा ही रहा।

वैसे भी आज सब देर से उठे थे। भावना और शुभदा भी देर से उठीं। दोनों अपनी हॉस्टल की आदत के मुताबिक एक साथ नहाने गईं। सब कुछ निपटाकर दोनों नीचे आईं। शुभदा ने मम्मी को आवाज़ देकर पूछा, “ग… नाश्ता तैयार है?” मम्मी ने कहा, “हां, तैयार है, ले जाओ।” शुभदा किचन में गई और दोनों के लिए नाश्ता लाकर बोली, “भावना, ये ले ग…” लेकिन भावना का ध्यान कहीं और था, वह सागर को ढूंढ रही थी। शुभदा ने आखिरकार गुस्से में उसकी जांघ पर प्लेट रख दी। प्लेट गर्म होने से भावना होश में आई। उसने शुभदा से पूछा, “सागर कहां है?” शुभदा बोली, “पता नहीं ग… शायद अभी उठा ही नहीं।” यह कहकर वह गर्मागर्म नाश्ते पर टूट पड़ी। भावना ने कहा, “उसे बोल ना, ट्रेन का रिज़र्वेशन करने को… मैं कल जाने वाली हूं ग…” शुभदा ने पूछा, “ए… क्यों ग?” भावना बोली, “अब महीना होने को आया है, मुझे जाने दे।”

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शुभदा ने नीचे से जोर से सागर को आवाज़ दी। सागर जागा और नीचे आकर बोला, “क्या ग दीदी?” शुभदा ने कहा, “भावना के लिए कल का दादर तक का रिज़र्वेशन कर दे, चूकना नहीं।” सागर बोला, “हां… करता हूं,” और नहाने चला गया। सागर ने नाश्ता करके रिज़र्वेशन के लिए निकल गया।

उसने भावना के लिए खिड़की वाली सीट बुक की और अपने लिए भी उसी के पास वाली सीट बुक कर बाकी काम निपटाकर घर लौट आया। घर पहुंचते ही उसने भावना को कल की ट्रेन का टिकट थमाया और बिना कुछ बोले उसे देखकर चला गया। भावना को सरप्राइज़ देने की योजना बनाकर उसने दो-तीन दिन के कपड़े लिए और घरवालों से कहा कि वह दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा है, दो-तीन दिन लगेंगे। उसके इस व्यवहार से भावना थोड़ा नाराज़ हो गई थी। रात तक वह उसका इंतज़ार करती रही, लेकिन सागर के न आने से वह इंतज़ार करते-करते सो गई।

अगले दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर उसने शुभदा के मम्मी-पापा के पैर छूकर सबका विदाई लिया और निकल पड़ी। जाते समय उसकी नज़र सागर को ढूंढ रही थी, भले ही उसे पता था कि वह नहीं है, फिर भी उसे लग रहा था कि वह आएगा। लेकिन सागर के न आने से वह उदास मन से विदा लेकर निकल गई। उसे स्टेशन छोड़ने शुभदा और उसके पापा गए थे। स्टेशन पहुंचते ही मुंबई जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लगी थी। रिज़र्व बोगी में उसका सामान रखकर शुभदा ट्रेन से उतर गई। विदाई देने के लिए भावना दरवाज़े पर आई। ट्रेन के छूटने से पहले हॉर्न बजा, लेकिन उसकी नज़र अभी भी सागर को ढूंढ रही थी, पर वह कहीं नहीं दिखा। आखिरकार ट्रेन चल पड़ी, और वह शुभदा व उसके पापा को हाथ हिलाकर अपनी सीट पर बैठ गई। ट्रेन ने स्टेशन छोड़ दिया था, और भावना खिड़की से बाहर देखते हुए रो रही थी।

तभी वहां बैठे एक लड़के (सागर) ने पूछा, “क्या हुआ मिस?” लेकिन भावना ने गुस्से से उसकी ओर देखा। सागर ने चेहरा ढक रखा था, इसलिए उसे पहचान नहीं पाई और फिर खिड़की से बाहर देखने लगी। सागर ने हंसते हुए फिर पूछा, “भावना मैडम, आप क्यों रो रही हैं?” यह सुनकर उसे हैरानी हुई कि इस लड़के को उसका नाम कैसे पता। उसने फिर उसकी ओर देखा, तो सागर ने अपना ढका हुआ चेहरा खोला। सागर को देखते ही भावना ने बिना कुछ सोचे चिल्लाया, “सागर…” और खुशी से उसे गले लगा लिया।

“और क्यों रे? शहाण्या, इतना रुलाया मुझे,” कहकर वह उसे प्यार से मारने लगी। सागर हंसते हुए बोला, “अरे हां… हां… बस अब ☺️।”

अगला भाग अनजाने में सब कुछ हुआ – 3

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