भावना की आंखों में छलके आंसुओं को सागर ने हल्के से पोंछा और उसे समझाया, “अरे… आज नहीं तो कल मुझे जाना ही था ना। मत रो ☺️। आज का दिन हमने बहुत अच्छा बिताया है।”
भावना उसके सामने बैठकर बोली, “मुझे तुझसे नहीं मिल पाने का बहुत बुरा लग रहा है रे… मेरे लिए ये बहुत तकलीफदेह है। तू कल जा रहा है तो ये हाल है मेरा, तू न रहा तो मेरा क्या होगा, पता नहीं।” सागर ने कहा, “अरे भावना, मुझे भी क्या ये जुदाई सहन होगी? छोड़ ना वो। हम एक-दूसरे से बात कैसे करेंगे? घर के फोन पर तो बात नहीं हो पाएगी। मैं एक काम कर सकता हूं। मेरा दोस्त है, उसका फोन बूथ है। वहां से मैं तुझे फोन करता रहूंगा। बाद में मैं पापा के पीछे पड़कर फोन ले लूंगा ☺️। फिर कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन तू क्या करेगी? और मैं तुझसे कॉन्टैक्ट कैसे करूं? अरे, तू चुप क्यों है? कुछ तो बोल।”
भावना बोली, “अरे… हां… हां, मैं भी यही सोच रही थी रे। मेरी दोस्त सायली है, उसके मम्मी-पापा दोनों जॉब करते हैं। तू वहां मुझे फोन कर सकता है। हम तय करें कि किस दिन और कितने बजे फोन पर मिलना है। मैं उससे बात कर लूंगी ☺️। कॉलेज शुरू होने के बाद तू मुझे वहां बेफिक्र फोन कर सकता है।” सागर हल्के से हंसते हुए बोला, “ठीक है।” बातों-बातों में उसने सागर की बहन, यानी अपनी दोस्त शुभदा का जिक्र छेड़ा। “अरे सागर, शुभदा मेरी सबसे करीबी और खास दोस्त है रे। आज तक हमने एक-दूसरे से कुछ नहीं छिपाया। मुझे हमारे रिश्ते के बारे में उसे बताना होगा। अगर उसे कहीं और से पता चला तो वह बहुत नाराज़ हो जाएगी। इसलिए मुझे लगता है कि मैं उसे बता दूं। वह समझ जाएगी ☺️ और हमारा साथ भी देगी। तुझे क्या लगता है रे?” सागर ने कहा, “अभी नहीं, कुछ दिन बाद बता।” भावना ने हंसते हुए ☺️ उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा, “ओके, ठीक है।”
बातों के बहाव में शाम हो गई थी, उन्हें पता भी नहीं चला। सागर ने पूछा, “आज तू मेरे साथ खाना खाएगी?” भावना ने हंसते हुए हामी भरी और फोन से खाने का ऑर्डर दे दिया। खाना आने तक दोनों फ्रेश हो गए। खाना आते ही दोनों खाने बैठे। खाने के बाद भावना ने पूछा, “तू कल ही जा रहा है ना?” सागर ने कहा, “हां, कल ही जाना है।” फिर बोली, “अरे हां, लेकिन हम घूमने के चक्कर में रिज़र्वेशन करना भूल गए। एक काम करते हैं, कल सुबह सीएसटी जाकर मैं तेरा रिज़र्वेशन कर देती हूं। कल रात की सह्याद्री चलेगी ना? रात का सफर होगा तो तुझे बोरियत भी नहीं होगी और सुबह कोल्हापुर पहुंच जाएगा।” सागर ने कहा, “ओके, हम दोनों सुबह जल्दी जाएंगे।” भावना बोली, “ठीक है, फिर मैं कल जल्दी आऊंगी। अब निकलती हूं, नहीं तो देर हो जाएगी।”
सागर उसे टैक्सी तक छोड़ने आया और टैक्सी में बिठाकर होटल लौट गया। इधर भावना घर पहुंची, फ्रेश होकर मम्मी से थोड़ी बातें की और सोने चली गई। सागर को भी चैन नहीं था, वक्त कट नहीं रहा था। उसने टीवी चालू किया और देखते-देखते कब नींद आ गई, पता नहीं चला। सुबह डोरकीपर ने जैसा कहा था, वैसा ही बेल बजाकर उसे जगाया। सागर ने उसे थैंक्स कहा, ब्रश और नहाकर सात बजे से भावना का इंतज़ार करने लगा। इधर भावना भी सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर सागर के पास जाने निकली। मम्मी ने पूछा तो उसने कहा, “सायली के साथ बाहर जा रही हूं, नाश्ता भी उसी के साथ करूंगी।” टैक्सी पकड़कर वह सागर के पास पहुंची। उसे तैयार देखकर बोली, “वाह… आज तो तैयार भी हो गया!” और ☺️ मुस्कुराते हुए “गुड मॉर्निंग स्वीट हार्ट” कहा। सागर ने भी हंसते हुए ☺️ “गुड मॉर्निंग माय हार्ट” कहा।
दोनों ने नाश्ता किया और रिज़र्वेशन के लिए निकले। दादर से ट्रेन पकड़कर सीएसटी पहुंचे और सह्याद्री का रिज़र्वेशन कराने के लिए लाइन में लग गए। उनके आगे कई लोग थे, इसलिए वक्त लगने वाला था। तब तक उन्होंने रिज़र्वेशन फॉर्म भर लिया। नंबर आने पर मनचाही ट्रेन का रिज़र्वेशन मिलते ही भावना के चेहरे पर संतुष्टि थी। रिज़र्वेशन होने के बाद सागर ने पूछा, “अब क्या करें?” भावना बोली, “हां रे, मैं भी यही सोच रही हूं… ज़रा रुक।” वह सोच में थी और सागर चुपचाप स्टेशन की भीड़ और ट्रेन की घोषणाओं के बाद भागदौड़ करते लोगों को उत्सुकता से देख रहा था।
तभी भावना ने सागर का हाथ पकड़ा और बोली, “चल, आज हम देवदर्शन करेंगे।” दादर जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए वे निकले। ट्रेन प्लेटफॉर्म पर थी ही, उसमें बैठकर कुछ ही देर में वे दादर पहुंच गए। दादर स्टेशन के पश्चिम से बाहर निकलकर टैक्सी पकड़कर सिद्धिविनायक मंदिर की ओर रवाना हुए। भावना बोली, “अरे, आज हम जोड़ी में दर्शन लेंगे और अपने लिए प्रार्थना भी करेंगे ☺️। यहां मांगी गई मुराद पूरी होती है, इसलिए यहां इतनी भीड़ रहती है। और आज संयोग से मंगलवार है रे… इसलिए मैंने यहां आने का प्लान बनाया। चलेगा ना तुझे?” सागर ने हंसते हुए ☺️ मूक सहमति दी। कुछ देर में वे सिद्धिविनायक मंदिर पहुंच गए। टैक्सी से उतरकर फूल-हार वाले से पूजा का थाल लिया और मंदिर के प्रांगण में दाखिल हुए। चप्पल रैक में रखकर दर्शन की लाइन में लग गए। जैसे-जैसे लाइन आगे बढ़ी, दोनों भी आगे बढ़ते गए। आधे-पौन घंटे बाद श्री गणराय के दर्शन लेकर दोनों ने मनोकामना मांगी, वंदन किया और बाहर निकले।
सागर को शाम को ट्रेन से जाना था, इसलिए दर्शन लेकर दोनों प्रसन्न मन से रूम पर लौटने निकले। पहुंचते-पहुंचते दोपहर के दो बज गए। शाम को सागर को छोड़ने के लिए भावना घर न जाकर उसके साथ रूम पर रुकी। दोपहर का खाना साथ खाकर दोनों ने मन खोलकर बातें कीं। बातों में चार बज गए। जाने की वक्त नज़दीक आ रहा था। सागर ने सामान समेटना शुरू किया। भावना ने उसके कपड़े बैग में व्यवस्थित रखे। सागर नहाकर तैयार हो गया। जैसे-जैसे जाने का समय पास आया, भावना भावुक हो रही थी। सागर तैयार होते ही भावना ने उसे गले लगाकर कहा, “सागर… तुझ बिना मुझसे नहीं रहेगा रे,” और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
सागर ने उसके आंसू पोंछते हुए हिम्मत दी, “ऐसे मत रो, मेरे मन का भी यही हाल है। कोशिश करूंगा, बीच-बीच में आता रहूंगा। शांत हो, नहीं तो मुझे आज भी रुकना पड़ेगा।” फिर उसके माथे पर होंठ रखकर मज़ाक में बोला, “जाते-जाते मुझे लगा था कि तू अपने रसीले, मधुर होंठों से मुझे मंत्रमुग्ध करेगी ☺️, लेकिन तू तो रोती ही रही। शायद आज मेरे नसीब में नहीं।” यह सुनकर भावना बोली, “चुप रह शहाण्या,” और उसके पीछे के बालों में उंगलियां फंसाकर उसके होंठों का लंबा चुम्बन लिया। फिर पूछा, “बस… या और चाहिए?” और फिर से चुम्बन लेकर बोली, “चल अब… नहीं तो आज भी यहीं रुकना पड़ेगा ☺️।” उसका हाथ पकड़कर दोनों रूम से निकले, रिसेप्शन पर बिल चुकाकर सीएसटी के लिए रवाना हुए।
दादर स्टेशन पहुंचकर टिकट लिया और सीएसटी जाने वाली ट्रेन के लिए प्लेटफॉर्म पर खड़े थे। प्लेटफॉर्म पर पहुंचते ही सागर हंसते हुए ☺️ सिर हिलाने लगा। भावना ने पूछा, “अरे, क्या हुआ? क्यों हंस रहा है? बता तो।” सागर बोला, “कुछ नहीं ग ☺️… इसी स्टेशन पर यहां के लोगों ने मुझे धक्के देकर ज़बरदस्त स्वागत किया था, वो याद आया तो हंसी आ गई।” भावना भी हंस पड़ी। ट्रेन आते ही दोनों सीएसटी के लिए रवाना हुए। कुछ देर में वे सीएसटी पहुंचे और मेल-एक्सप्रेस वाले प्लेटफॉर्म की ओर गए। सह्याद्री के आने की घोषणा हो रही थी। ब्लैकबोर्ड पर रिज़र्वेशन के हिसाब से बोगी नंबर देखकर वे उसी के सामने खड़े हो गए।
दोनों चुप थे। जुदाई की वजह से यह खामोशी थी। आखिरकार सागर ने पूछा, “क्या ग? तू इतनी चुप क्यों है? कुछ तो बोल।” भावना बोली, “तू जा रहा है न… अब हम मिल नहीं पाएंगे, इस ख्याल से ही बेचैन हूं रे, और कुछ नहीं।” सागर ने कहा, “अरे भावना, मेरा भी तो यही हाल है। तेरे साथ रहने, तेरे साथ की आदत हो गई है ग… अब न मिल पाने की वजह से मैं भी बेचैन हूं।” दोनों के बीच गहरी खामोशी छा गई। एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म पर आई। दोनों ने उदास मन से एक-दूसरे को देखा। दोनों की आंखों में आंसू छलक आए। जाना तो था ही। सागर ने बैग उठाया और बोगी में चढ़ गया। भावना भी उसके पीछे चढ़ी। रिज़र्वेशन के मुताबिक सीट देखकर सागर अपनी सीट पर बैठ गया। बगल की सीट खाली थी, तो भावना कुछ पल उसके पास बैठ गई। क्या बोलें, दोनों को कुछ सूझ नहीं रहा था। बस नम आंखों से एक-दूसरे को देख रहे थे। मानो उनकी आंखों के आंसू ही बात कर रहे हों।
तभी अचानक सागर बोला, “अरे भावना… तूने मुझे सायली के घर का नंबर दिया ही नहीं। जल्दी दे।” भावना ने आंसू पोंछते हुए कहा, “अरे हां रे… मैं तो पूरी भूल गई थी। रुक, देती हूं।” डायरी से नंबर निकालकर उसने सागर को दिया और बोली, “इसे संभालकर रख, नहीं तो हम बात नहीं कर पाएंगे। कहीं और भी नोट कर ले।” फिर हंसते हुए ☺️ कहा, “अच्छा हुआ तूने याद दिलाया, नहीं तो कुछ नहीं होता।” एक्सप्रेस छूटने का वक्त हो गया था। भावना ने उसे जोर से गले लगाया और बोली, “महीने में अगर हो सके तो एक चक्कर मार लिया कर।” सागर ने उसके गाल पर हाथ रखकर कहा, “हां भावना… कोशिश करूंगा। हम फोन पर हर मंगलवार दोपहर को बात करेंगे। तू ठीक रहना और अब नीचे उतर, ट्रेन शुरू होगी।”
भावना “हां” कहकर नीचे उतर गई और खिड़की के पास आकर उस पर हाथ रखकर सागर को देखने लगी। उसके आंसुओं को देखकर सागर ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर तसल्लारी दी। ट्रेन छूटने से पहले हॉर्न बजा। भावना ने उसका हात पकड़ा और आंखों से कह रही थी, “तू ना जाने दे…”। सागर की आंखें भी नम थीं। कुछ बोल न पाने की वजह से उसने भी आंखों से ही जवाब देने की कोशिश की।
ट्रेन ने धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म छोड़ना शुरू किया। भावना ने उसका हाथ नहीं छोड़ा, वह ट्रेन के साथ चलने लगी। लेकिन ट्रेन की रफ्तार बढ़ते ही उसे हाथ छोड़ना पड़ा। सागर जल्दी से सीट छोड़कर दरवाजे पर आया और नम आंखों से जब तक वह दिखी, उसे हाथ हिलाता रहा। भावना वहीं खड़ी, स्तब्ध होकर सागर को देख रही थी। उसके आंसुओं ने धीरे-धीरे सागर का चेहरा धुंधला कर दिया। ट्रेन प्लेटफॉर्म छोड़ चुकी थी, फिर भी भावना उदास मन से वहीं खड़ी थी। बाकी लोग उसे धक्के दे रहे थे, लेकिन वह निश्चल खड़ी रही।
काफी देर बाद होश में आई। नम आंखों की वजह से सब कुछ धुंधला दिख रहा था। आंसू पोंछकर वह कुछ देर बेंच पर बैठी रही। सागर के सिवा उसके दिमाग में कोई और ख्याल नहीं था। खुद को संभालकर वह घर जाने के लिए निकली। ट्रेन पकड़कर दादर स्टेशन उतरी। पिछले दो-तीन दिन सागर के साथ रहने की वजह से इस पल में उसका न होना उसे खल रहा था। इधर सागर को भी भावना के बिना सफर नीरस और उबाऊ लग रहा था। उसकी आंखों के सामने बस भावना का भावुक चेहरा आ रहा था। ट्रेन की खिड़की से बाहर अंधेरा था, सिर्फ घरों और खंभों की मद्धम रोशनी दिख रही थी। वह भी उदास मन से उन टिमटिमाती रोशनी को एकटक देख रहा था। उसके लिए यह सफर अंतहीन लग रहा था।
इधर भावना उदास मन से स्टेशन से बाहर निकली और घर जाने के लिए टैक्सी पकड़ी। टैक्सीवाले ने उसे उसकी सोसाइटी के सामने रोक लिया, लेकिन भावना का ध्यान कहीं और था। “मैडम, उतरना नहीं है क्या?” टैक्सीवाले के पूछने पर वह होश में आई। “सॉरी भैया, ध्यान नहीं था,” कहकर पैसे देकर उतर गई और घर की ओर चली। डोरबेल बजाने पर मम्मी ने दरवाज़ा खोला। उसका उदास चेहरा देखकर मम्मी ने पूछा, “क्या हुआ ग? ठीक तो है ना?” लेकिन भावना बिना कुछ बोले अपनी रूम में चली गई। मम्मी ने सोचा कि शायद थकान होगी और अपने काम में लग गईं। खाना तैयार था। सब खाने बैठे, लेकिन भावना को बुलाने के बावजूद वह बाहर नहीं आई। जुदाई का दर्द सहन न होने की वजह से वह तकिए में मुंह छिपाकर रो रही थी। मम्मी उसे उठाने के लिए रूम में आईं। “मम्मी,” कहकर भावना उनकी गोद में सिर रखकर रोने लगी। मम्मी ने कहा, “अरे, बता तो… पहले भी कुछ नहीं बोली, अब तो बता।” भावना रोते हुए बोली, “कुछ नहीं ग मम्मी,” और उठकर उनके साथ खाने चली गई। खाते वक्त वह चुप थी, किसी गहरी सोच में डूबी थी। यह मम्मी-पापा को दिख रहा था। पापा ने भी पूछा, लेकिन वह चुप रही। खाना खाकर मम्मी-पापा को गुड नाइट्स कहकर अपनी रूम में चली गई। बिस्तर पर खुद को पटक लिया। पूरी रात वह जागती रही, सागर के साथ बिताए हर पल को तकिए को सीने से लगाकर याद करती रही।
इधर सागर को भी नींद नहीं आ रही थी। ट्रेन में सब सो रहे थे, लेकिन वह भावना की याद में तड़प रहा था। उसे बस कोल्हापुर जल्दी आने की चाह थी। रात खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। भावना ने भी पूरी रात तकिए को सीने से लगाकर सागर की याद में आंसुओं के साथ वक्त बिताया। सुबह होने लगी, लेकिन दोनों ही एक-दूसरे की याद में जागे थे। भावना की आंखें रातभर जागने और रोने से सूज गई थीं। उठकर चेहरा धोया और बिस्तर पर लौटकर टे पर रखी किताब के पन्ने पलटने लगी। इधर कोल्हापुर स्टेशन आया। सागर बैग लेकर ट्रेन से उतर गया। स्टेशन मास्टर से विनती कर दोस्त को फोन लगवाया और उसे लेने बुलाया। तब तक बाहर चाय की चुस्की लेते हुए उसका इंतज़ार करने लगा।
सागर का दोस्त वैभव बाइक लेकर आया। उसे देखते ही सागर ने “ए वैख्या!” कहकर जोर से पुकारा। वैभव ने उसे देखते ही बाइक उसकी ओर मोड़ दी। सागर ने चायवाले से एक स्पेशल चाय बनवाने को कहा। तब तक वैभव ने उस पर सवालों की बौछार कर दी। वजह थी कि सागर ने घरवालों को कहा था कि वह दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा है, लेकिन गहरे में वह कहीं नहीं गया था। सागर और उसके दोस्त जिगरी यार थे। वैभव के सवालों के बाद सागर बोला, “हां हां… ☺️ रुक जरा, सब बताता हूं, पहले चाय तो पी।” इधर भावना ने किताब के पन्ने पलट लिए थे। अनमने ढंग से उठकर नहाया और चाय के लिए किचन में गई। “मम्मी, चाय दे ना, सिर बहुत दुख रहा है,” कहकर वहीं बैठ गई। मम्मी ने अदरक और इलायची पाउडर डालकर चाय बनाकर दी। चाय पीकर वह हॉल में आई।
सागर ने वैभव को अपनी और भावना की मुलाकात से लेकर पिछले दिन तक की सारी बातें बताईं। वैभव हैरानी से बोला, “ओह… तुम तो हमसे भी आगे निकले रे! लव गुरु बन गए। हमें भी सिखा ना, लड़कियां कैसे पटाई जाती हैं?” और हंसते हुए ☺️ हाथ जोड़ लिए। सागर ने उसे बताने से पहले वचन लिया कि वह किसी और को कुछ नहीं बताएगा। बातें खत्म होने के बाद वैभव बोला, “सागर, कुछ भी कह… भाभी दिखने में कमाल हैं रे।” सागर हंसते हुए ☺️ बोला, “हां रे, वो सुंदर तो है ही… कब उसके प्यार में पड़ गया, मुझे खुद नहीं पता।” दोनों बाइक पर बैठकर घर के लिए निकल गए।
वैभव से बातें करने से सागर थोड़ा सामान्य हुआ, लेकिन बाइक पर घर जाते वक्ते वैभव के साथ बातों में भी भावना ही छाई थी। बातों में घर कब आ गया, पता नहीं चला। सागर को छोड़कर वैभव बोला, “शाम को मिलते हैं, हमारी usual जगह पर,” और चला गया। इधर भावना सोच रही थी कि सागर घर पहुंचा होगा या नहीं? उसके घर फोन करूं या नहीं? वैसे भी, कोल्हापुर छोड़ने के बाद सागर के साथ रहने की वजह से उसने शुभदा को फोन नहीं किया था, लगभग भूल ही गई थी। उसे पता था कि शुभदा इस बात पर नाराज़ होगी। शुभदा से बात कर सें सागर के बारे में भी पता चलेगा, सोचकर उसने शुभदा के घर फोन किया। फोन की रिंग बजी और शुभदा ने ही उठाया। “हाय शुभदा, कैसी है?” कहते ही शुभदा बोली, “क्या ग, अब तुझे मेरी याद आई? कुछ बोल मत मेरे से।” भावना को अंदाज़ा हो गया कि वह बहुत गुस्सा है। “सॉरी ग शुभड़े… please मेरा बात सुन ना,” लेकिन वह सुनने को तैयार नहीं थी। “मैंने तेरे घर फोन किया था ये जानने के लिए कि तू पहुंची कि नहीं। काकूं से पता चला कि तू पहुंच गई थी। और वो भी बोलीं कि तू घर पर थी ही नहीं।” भावना ने कहा, “अरे शुभदा, थोड़ा बिज़ी थी ग… इसलिए फोन नहीं किया। सॉरी तो बोल रही हूं ना।” तभी शुभदा की मम्मी बोलीं, “ग, सागर आ गया है।”
शुभदा ने मम्मी से सागर के आने की बात कही, जो भावना ने अनजाने में सुन लिया। इससे उसकी जान में जान आई। शुभदा अभी भी नाराज़ थी। भावना ने कई बार माफी मांगी, तब जाकर उसका गुस्सा थोड़ा शांत हुआ और वह सामान्य बात करने लगी। “क्या ग शुभड़े, इतना गुस्सा करना पड़ता है? तू तो मेरी बात सुनने को भी तैयार नहीं थी। मुझे कितना बुरा लगा,” भावना बोली। शुभदा ने कहा, “नहीं ग भावना, ऐसा नहीं, लेकिन कम से कम एक फोन तो करना चाहिए था ना। पहले तू कभी ऐसी नहीं थी, इसलिए थोड़ा गुस्सा आ गया ☺️😊।” भावना बोली, “हां ना शुभड़े? तुझसे मिलकर तो तुझे दिखा तो देती।” शुभदा हंसते हुए 😄 बोली, “तो आ जा ना यहां…” और दोनों 😊😊 हंसने लगीं।। कई दिनों बाद दोनों आपस में बात कर रही थीं, इसलिए ढेर सारी बातें मन खोलकर कीं।
इधर सागर नहाकर अपनी रूम से निकला और जानबूझकर सोफे पर बैठ गया। भावना को पता चले, इसलिए जोर से मम्मी को आवाज़ दी, “मम्मी ग, नाश्ता दे… भूख लगी है, कल से कुछ नहीं खाया।” भावना ने शुभदा से पूछा, “क्या ग, सागर क्यों चिल्ला रहा है?” शुभदा बोली, “तू ही पूछ ना उससे,” और सागर को फोन दे दिया। सागर ने फोन लिया और बात करने लगा। इधर भावना शुभदा के इस कदम से थोड़ा घबरा गई, लेकिन सागर की आवाज़ सुनकर उसे सुकून मिला। क्या बोलना है, यह समझ नहीं आ रहा था। जितना-जितना बात करके सागर ने जल्दी शुभदा को फोन वापस दे दिया। बातें खत्म करके दोनों ने “बाय… लव यू, मिस यू” कहकर फोन रखा। सागर की आवाज़ सुनकर भावना खुश थी और काफी हद तक सामान्य हो गई थी। वैसे भी अगले मंगलवार को फोन पर बात तय थी, इसलिए वह और खुश थी। इस खुशी में बिस्तर का तकिया सीने से लगाकर गोल-गोल घूमते हुए उसने उस होटल रूम में टीवी पर बजे गाने “तुम मिले… दिल खिले और जीने को क्या चाहिए” को गुनगुनाया। बीच-बीच में खुद को आइने में देखकर शरमा रही थी। सचमुच प्यार में पड़ने पर क्या होता है, वह अनुभव कर रही थी। उसके गालों की कली खिल उठी थी। मम्मी अपनी बेटी को खुश और सामान्य देखकर खुश थीं। दोपहर का खाना खाकर, रातभर जागने की वजह से भावना हल्की झपकी लेने अपनी रूम में गई और बिस्तर पर लेट गई।
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