Posted in

गुदगुदी स्वर्ग की सैर

शरीर में आलस भरा था। दोपहर को घर में कोई नहीं था। बच्चे भी स्कूल गए थे। क्या करें, सोचा चलो सो जाते हैं। फिर चादर ओढ़कर सो गई। उसकी हालत बड़ी दयनीय थी। पति के मरने को पांच-छह साल हो गए थे। वैधव्य का जीवन नसीब में आया था। परपुरुष का ख्याल मन में आते ही पाप लगता था। इसलिए पति के बनाए बीस कमरों के किराए पर ही सुख-शांति से दो बच्चों को पाल रही थी। संतुष्टि बस एक चीज की नहीं थी—शारीरिक सुख की। लेकिन इसका कोई उपाय नहीं था। मन में कितनी भी जलन हो, वह दुनिया को अपना दुख नहीं बताती थी। सोकर उठने के बाद क्या करें, सोचकर उसने हथेली पर तंबाकू की मिश्री ली और सोचा थोड़ा वक्त दो घर छोड़कर रहने वाली गोदाबाई के साथ मिश्री चबाते हुए गप्पें मार लें। इसलिए शालू गोदाबाई के घर गई। गोदाबाई के घर के आसपास फल-फूलों के पेड़ थे। वहाँ जाकर बैठने से मन को थोड़ी शांति मिलती थी। इसलिए शालू गोदाबाई के पास गई। आवाज देने की बजाय उसने दरवाजा धक्का देकर देखा। ‘इतनी देर तक क्या यह सोती रही?’ ऐसा सवाल मन में आया। तभी अंदर से खुसपुस सुनाई दी। किसी परपुरुष की आवाज कानों में पड़ी। शालू एकदम चौंक गई। उसे बड़ा झटका लगा। शालू बिना आवाज किए दाहिनी तरफ की दीवार की खिड़की के पास गई। खिड़की का एक पट खुला था। गोदाबाई उसे गले लगाकर बोली, यहाँ कौन मरने आता है, और अगर कोई आया भी तो कह देंगे कि बैठने आए थे। मुझे भी गुदगुदी स्वर्ग की सैर करनी थी।

ये कहानी भी पढ़िए :  माँ को तलाक के बाद पहली बार चोदा

वह आवाज गाँव में आवारा घूमने वाले जग्गू की थी। उसके बाप-दादाओं ने खूब कमाई कर रखी थी। काम कुछ नहीं था, जेब भरी थी। ऐश-मौज में दिन गुजर रहे थे। शालू ने उन दोनों का पूरा कामकाज देख लिया था। इससे शालू भी अब खूब तप गई थी। घर लौटते वक्त उसके सामने सोहम का चेहरा आया। सोहम की पत्नी मैना हमेशा बीमार रहती थी। दोनों से उसकी कभी-कभार बात होती थी। शालू मन ही मन खुश हुई। शाम तक लाख का खट्टा उसके सामने से नहीं गया। अगला दिन उजाला। वह बच्चों को नहला रही थी तभी अचानक सोहम आ गया। उसे देखकर शालू हैरान रह गई। उसने बाथरूम से कहा, बैठो सोहम बाबू, अभी आई। फिर उसने जल्दी-जल्दी बच्चों को नहलाया, उनके शरीर तौलिये से पोंछे और सोहम के पास बैठकर उन्हें कपड़े पहनाते हुए पूछा, वाहिनी को थोड़ी परेशानी थी? बताओ सोहम बाबू, मैं क्या तुम्हारे लिए पराई हूँ? यह कहते हुए शालू उसकी आँखों में आँखें डालकर बात करने लगी। थोड़े पैसे चाहिए थे। वेतन मिलने पर किराए के साथ लौटा दूँगा। अरे, इसमें क्या, तुम मेरे किराएदार हो फिर भी मैं तुम्हें घरवाला मानती हूँ। यह कहकर शालू ने फट से सोहम का हाथ अपने हाथ में ले लिया। शालू के मन में एक ख्याल आया। उसने उसे रात में खाने के लिए अपने घर आने को कहा। रात को सोहम शालू के घर आया। बच्चे सो चुके थे। शालू ने उसके लिए मटन का कालवण बनाया था।

ये कहानी भी पढ़िए :  डैड की इजाजत से मम्मी को चोदा – भाग 2

दोनों ने खाना शुरू किया। खाना खाने के बाद रात ग्यारह बजे तक वे गप्पें मारते रहे। शालू ने प्यार से आग्रह किया, बीवी नहीं है तो रुक जाओ ना। सोहम भी एक पुरुष था। वह फट से रुक गया। शालू ने उसके लिए बिस्तर लगाया। थोड़ी दूरी पर अपना बिस्तर लगाया और सो गई। सोहम की हिम्मत नहीं हो रही थी। आखिरकार शालू ने ही हिम्मत करने का फैसला किया। शालू उठकर उसके बिस्तर पर गई और उसके लंड के साथ छेड़खानी करते हुए खींचकर बोली, सोहमराव, मैं आई हूँ। जागो ना। कौन वाहिनी? वह जानबूझकर आँखें मलते हुए बोला। सोहम ने उसे फट से अपनी बाहों में ले लिया। दोनों ने कपड़े उतारे। शालू ने जाँघें तान दीं। शालू जोश में उसे लिपटते हुए बोली, बैठकर करेंगे ना?

बैठकर करने में मज़ा आएगा। यह चमकती ककड़ी घुसलते हुए देख सकते हैं। बहुत बड़ा है ना तुम्हारा लंड। वह आनंद से चिल्लाते हुए बोली। अब रात भर सोएँगे ही नहीं। बेचारा कई दिनों से भूखा है। उसकी चूत को तानकर उसमें लंड डालकर सोहम बोला, मुझे जकड़ो, मैं गांड हिलाती हूँ। और जकड़ो। सब गया ना? शालू फिर आगे गांड हिलाने लगी। उसने उसे पीठ के बल लिटा दिया। उसका कामरस शराब पीने जैसा उमड़ रहा था। उसने उसे कसकर पकड़ने को कहा और उसके लंड को घुसलने लगी। लंड की मोटाई अच्छी थी, जिससे चूत की नाजुक चमड़ी ठीक से रगड़ रही थी। शालू और सोहम स्वर्ग की सैर कर रहे थे। तीन मिनट में शालू को पसीना छूट गया, फिर भी वह होंठ कसकर स्तंभन करती रही। सोहम दोनों हाथों से उसके एक-एक स्तन को मस्ती से मसल रहा था। दुनिया का उन्हें भूल हो गया था। सोहम उसे रात भर ठोकता रहा। सोहम बहुत खुश था। कई दिनों बाद उसे यह दिन देखने को मिले थे। मुझे भी गुदगुदी स्वर्ग की सैर करनी थी।

ये कहानी भी पढ़िए :  मित्र की माँ, भाग 1

2 views