मेरी ये कहानी माँ से पहले मौसी मेरी माँ और मौसी की है. सुशीला और संगीता सगी बहनें थीं। दोनों में दो साल का अंतर था। दोनों की उम्र चालीस के पार थी। एक ही शहर में रहती थीं, इसलिए उनके बीच आना-जाना लगा रहता। एक दिन संगीता सुशीला के घर गई। सुशीला उसे अपने बेडरूम में ले गई। संगीता को लगा कि आज सुशीला थोड़ी उदास है. संगीता ने उससे पूछ लिया।
सुशीला ने गहरी साँस छोड़ी और बोली, “कैसे बताऊँ, समझ नहीं आता, लेकिन बताती हूँ।… तुझसे क्या छुपाना? मेरी वासना अधूरी रहती है। ये (पति) अपने धंधे की वजह से हमेशा घूमते रहते हैं। जब यहाँ होते हैं, तो बस धंधे की ही सोचते रहते हैं। रात को कभी नजदीकियाँ बढ़ाने की कोशिश की, तो या तो टाल देते हैं या बस जल्दी-जल्दी एक बार करके सो जाते हैं। मेरी बहुत चिढ़ होती है।”
संगीता हँसते हुए बोली, “अरे, हर घर में मिट्टी के चूल्हे ही हैं। मेरी भी हालत बहुत अलग नहीं है। लेकिन मैंने तोड़ा निकाला।”
सुशीला ने सवालिया नजरों से संगीता की ओर देखा और बोली, “मतलब? कैसा रास्ता?”
संगीता बोली, “मैंने इनके एक दोस्त को पकड़ लिया। मुझे लग रहा था कि वह मुझे उस नजर से देखता है। फिर एक दिन जब ये घर पर नहीं थे, मैंने उसे घर बुलाया और अपनी इच्छा बता दी। वह तो बस मौके की ताक में था। हमने खूब मस्ती की। मैंने उसे साफ कह दिया कि हमारे रिश्ते सिर्फ सेक्स के लिए होंगे। न प्यार, न कोई और बात। वह भी तैयार था। तब से हम नियमित सेक्स करते हैं—कभी हमारे घर, कभी उसके दोस्त के फ्लैट पर। हफ्ते में दो-तीन बार तो मजे लेते ही हैं। किसी को कुछ पता नहीं चलता।”
यह बातचीत चल रही थी तभी सुशीला का बेटा विवेक घर आया। दोनों का ध्यान उसकी ओर नहीं गया। विवेक ने कान लगाकर उनकी बातें सुनना शुरू कर दिया।
सुशीला बोली, “तेरे पास तो इनके दोस्त हैं, घर पर आना-जाना है। लेकिन हमारे यहाँ ऐसा कुछ नहीं। न इनके दोस्त हैं, न कोई घर आता है। इनके अलावा घर में मर्द का नाम लेना हो तो बस हमारा विवेक। मैं क्या करूँ?”
संगीता बोली, “मैं कोशिश करके देखती हूँ। इनके बहुत दोस्त हैं, और मेरे भी। कुछ न कुछ रास्ता निकलेगा। वैसे, अगर तू तैयार हो तो हम दोनों सेक्स करें?”
सुशीला ने आँखें फाड़कर कहा, “कैसे मुमकिन है? हम दोनों औरतें हैं। मर्द कहाँ है?”
संगीता बोली, “ऐसे भी सेक्स हो सकता है। मैं तुझे सिखाती हूँ।” इतना कहकर संगीता ने सुशीला को पास खींचा और उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर चूमने लगी। विवेक आँखें फाड़कर देख रहा था कि आगे क्या होता है।
सुशीला पहले शरमाई, लेकिन फिर वह भी संगीता के होंठ चूसने लगी। फिर संगीता ने सुशीला की साड़ी का पल्लू नीचे किया और उसके ब्लाउज के बटन खोले। फिर उसने अपना ब्लाउज उतारा और सुशीला से बोली, “चल, एक-दूसरे के बॉल्स दबाएँ।” उसने सुशीला के स्तनों को दबाना शुरू किया और बोली, “तू भी दबा।” दोनों एक-दूसरे के स्तनों को दबाने लगीं। सुशीला गर्म होने लगी।
दोनों ने अपनी साड़ियाँ उतार दीं। संगीता ने सुशीला को लिटाया और उसका पेटीकोट ऊपर करके उसकी चड्डी नीचे खींची। वह सुशीला के पैरों के बीच बैठी और उसकी चूत चाटने लगी। सुशीला सिसकारियाँ भरने लगी। वह अपनी कमर ऊपर उठाने लगी, पैर फैलाने लगी। कुछ देर बाद संगीता ने अपनी चड्डी उतारी और सुशीला से बोली, “अब तू मेरी चूत चाट।”
सुशीला बोली, “नहीं, तू ही कर ना। कितना मस्त लग रहा है…”
संगीता बिना कुछ बोले अपना पेटीकोट ऊपर करके सुशीला के मुँह पर बैठ गई और अपनी चूत उसके चेहरे के पास लाकर बोली, “अब तू मेरी चाट और मैं तेरी चाटती हूँ।” वह नीचे झुकी और फिर से सुशीला की चूत चाटने लगी। दस-पंद्रह मिनट बीतने के बाद सुशीला बोली, “बस हो गया। कुछ तो संतुष्टि मिली। अब रुकें। विवेक के घर आने का वक्त हो गया है।”
विवेक को अपने कानों और आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वह भी खूब गर्म हो चुका था। दोनों को उठते देखकर वह झट से पीछे हटा और घर से बाहर निकल गया। पंद्रह-बीस मिनट टहलकर वह फिर घर लौटा। उसे पता चला कि उसकी माँ बाहर गई है। उसने ठान लिया कि अब मौसी को एक बार तो चोदना ही है, चाहे धमकी देकर सही। अपनी रूम की ओर जाते वक्त उसने माँ के कमरे में झाँका, तो संगीता आरामकुर्सी पर झपकी ले रही थी।
वह अंदर गया और संगीता को जगाते हुए बोला, “क्या मौसी, आज मम्मी के साथ क्या गप्पें चल रही थीं?” संगीता बोली, “कुछ नहीं रे, वही रोज की बातें। कुछ खास नहीं।”
विवेक उसके पीछे जाकर खड़ा हुआ और बोला, “क्यों झूठ बोलती है? मैंने सब सुना और देखा भी है। मजा आता है कि आँखें बंद करके दूध पी लिया तो किसी को पता नहीं चलेगा, लेकिन दुनिया देखती है।”
सुशीला कुछ बोल पाती, उससे पहले ही विवेक ने उसके स्तनों पर हाथ रखे और जोर से दबा दिए। सुशीला ने उसके हाथ झटक दिए और गुस्से में बोली, “यह क्या कर रहा है! मैं तेरी मौसी हूँ, तेरी माँ जैसी।”
विवेक छद्मी हँसी हँसते हुए बोला, “यह मुझे बता रही है? काका के दोस्त से चुदवाते वक्त यह नहीं सूझा क्या? वह चलेगा तो मैं क्यों नहीं? तेरा ठोकू भी तो काका की उम्र का ही होगा न। उससे तो मैं बेहतर हूँ न? एकदम जवान, खून में उबाल वाला? तू मना कर रही है तो रहने दे, लेकिन फिर यह बातें काका के कानों तक पहुँचानी पड़ेंगी। सोच ले।”
संगीता लाचार होकर बोली, “उन्हें कुछ मत बता रे बाबा। हमारा अच्छा-खासा घर उजड़ जाएगा। बोल, क्या करूँ कि तू चुप रहे?”
विवेक ने फिर से संगीता के स्तनों पर हाथ रखे और दबाते हुए बोला, “बस, आज मुझसे चुदवा। आज नहीं तो कल मैं तेरे घर आऊँगा और फिर तुझ पर चढ़ूँगा।” सुशीला बोली, “अब कोई चारा नहीं दिखता। ठीक है। करेंगे सेक्स। अभी कर लें।”
विवेक खुशी से बोला, “शानदार। लेकिन मम्मी आ गई तो?” संगीता बोली, “सुशीला को आने में कम से कम एक घंटा तो लगेगा, उसने ऐसा कहा था। उसे किसी ऑफिस में काम है। हम अभी कर लें।”
विवेक उसके सामने खड़ा होकर बोला, “वाह, फिर तो मस्त है।” देखते-देखते उसने अपनी जींस उतारी और अपने लंड की ओर इशारा करते हुए संगीता से बोला, “देख, मेरा लंड एकदम तैयार है।” संगीता उसकी चड्डी के उभार को देखती रही। विवेक बोला, “अब बस देखती रहेगी या तू भी तैयार होगी? अरे, ज्यादा देर हिलाने से नहीं चलेगा, वरना मम्मी आ जाएगी।”
संगीता बोली, “अब तैयार होने में क्या?”
विवेक आगे बढ़ा, उसने संगीता की साड़ी का पल्लू नीचे किया और उसके ब्लाउज के बटन खोले। ब्लाउज हटने के बाद उसने उसके स्तनों को मुट्ठी में लिया और जोर से दबाने लगा। संगीता चुपचाप सब सह रही थी। वह कोई हरकत नहीं कर रही थी, यह देखकर विवेक फिर उसके पीछे जाकर खड़ा हुआ, उसे थोड़ा आगे झुकाया और उसकी ब्रा का हुक खोल दिया।
संगीता के स्तन आजाद हो गए। विवेक उसके मुलायम स्तनों को जी भरकर दबाने लगा। संगीता ने शर्म से अपनी आँखें बंद कर लीं। कुछ देर स्तनों को दबाने के बाद विवेक बोला, “अब खड़ी हो जा।” लेकिन संगीता ने अनसुना कर दिया। फिर विवेक ही उसके सामने जाकर खड़ा हुआ और उसे कुर्सी से उठाया। संगीता की नजर अभी भी नीचे थी। उसने अपने स्तनों को अपने हाथों से ढक लिया। विवेक कुछ देर उसे बस देखता रहा। फिर उसने संगीता का सिर ऊपर उठाया और उसके होंठों को चूमा। कुछ देर बाद उसके होंठों पर होंठ रखे हुए उसने उसके हाथ उसकी छाती से हटाए और उसे और पास खींच लिया।
विवेक अब उसे चूमते हुए उसके स्तनों को रगड़ने लगा, उसके निप्पलों को मसलने लगा। उसके इस स्पर्श से संगीता भी गर्म होने लगी। मन में न चाहते हुए भी वह विवेक को जवाब देने लगी—उसने अपने दोनों हाथ विवेक की पीठ पर फेरना शुरू किया। उसका शरीर तपने लगा। विवेक को यह महसूस हुआ। उसने एक झटके में सुशीला के पेटीकोट की नाड़ी खोल दी। उसका पेटीकोट जमीन पर गिर गया।
विवेक उसे सहलाते हुए उसके स्तनों को दबा रहा था, उसके होंठ चूम रहा था। संगीता भी उसकी पीठ सहलाने लगी। आखिरकार विवेक ने सुशीला की चड्डी में हाथ डाला और उसकी चूत को मसलने लगा। संगीता सिसकारियाँ भरने लगी। उसने एक हाथ विवेक के तने हुए लंड पर रखा और उसे मसलने लगी। संगीता की चूत मसलते वक्त विवेक को लगा कि उसकी मौसी अब चुदवाने को तैयार है।
विवेक संगीता को बिस्तर पर ले गया। वह लेटने ही वाली थी कि उसका मोबाइल बजा। विवेक ने स्क्रीन पर “ताई” नाम पढ़ा। उसने संगीता को फोन स्पीकर पर डालने का इशारा किया। संगीता ने फोन उठाया और स्पीकर ऑन किया। दूसरी तरफ से सुशीला बोल रही थी, “संगीता, मुझे घर आने में कम से कम एक घंटा तो लगेगा। इसलिए तू रुकी नहीं तो भी चलेगा। जाते वक्त लैच लगा देना। विवेक के पास चाबी है।”
संगीता बोली, “ताई, कितनी फिक्र करती है। तू आराम से आ। मैं घर चली जाऊँगी।”
सुशीला बोली, “अरे, तेरे आसपास कोई तो नहीं है ना? फिर एक काम कर। अगर तू घर जाने के लिए निकली नहीं है, तो आज हमारे यहाँ ही रह। अभी इनका फोन आया था। उनकी अचानक कल के लिए मीटिंग फिक्स हुई है, तो वे आज नहीं आएँगे।” एक पल रुककर वह धीमी आवाज में बोली, “तू आज रुकी तो हम दोपहर जैसा मजा फिर से ले सकते हैं। तो रहेगी ना?”
संगीता ने हामी भरी, फोन बंद किया और लेट गई। उसने विवेक की ओर देखकर कहा, “इतना भड़काया है, अब काम पूरा कर ले। कब से तुझे अपने अंदर लेने को बेताब हूँ।”
विवेक ने अपनी चड्डी उतार दी। उसका लंड पूरी तरह तनकर हिलने लगा था। संगीता उसके हथियार को आँखें फाड़कर देखने लगी। उसने अपने पैर फैलाए और हाथ आगे करके विवेक को आमंत्रित किया। विवेक उसके पैरों के बीच झुका। संगीता ने अपने पैर उठाए। विवेक आगे सरका और उसकी चूत में अपना लंड डाला। पहले से गीली हो चुकी संगीता की चूत में विवेक का लंड आसानी से अंदर चला गया।
संगीता ने गहरी साँस ली और छोड़ी। उसने अब तक मध्यम उम्र के मर्दों से चुदवाया था, और उसे मजा भी आया था। लेकिन विवेक जैसे जवान मर्द के नीचे वह आज पहली बार लेटी थी। यह मजा कुछ और ही था। उसने अपने पैर उठाकर विवेक की कमर के चारों ओर लपेट लिए। विवेक आराम से उसे चोदने लगा। उसका तना हुआ लंड उसकी चूत में आजादी से अंदर-बाहर होने लगा। संगीता आँखें बंद करके इस सुख का आनंद ले रही थी।
कुछ देर बाद संगीता विवेक से बोली, “मस्त चोद रहा है रे। अहाहा। लेकिन अब जोर से चोद। मुझे पीस डाल। मेरी चूत को रगड़कर शांत कर दे। कितने सालों बाद यह स्वर्ग का सुख मिल रहा है। तू पहले क्यों नहीं मिला मुझे।”
विवेक ने अपनी रफ्तार थोड़ी बढ़ाई और बोला, “तुझे पूरा संतुष्ट करूँगा। फिक्र मत कर। लेकिन जरा ठहर। धीरे-धीरे चोदने में मजा आता है। मेरा लंड पहले धीरे-धीरे करता है तो ज्यादा खुश होता है। तू आराम से लेटी रह। कुछ देर बाद तू खुद बोलेगी कि अब धीरे कर।”
संगीता बोली, “कर बाबा, जैसे तेरा मन हो। बस मेरी चूत को पूरी तरह फिट कर दे, बस।”
विवेक ने धीरे-धीरे रफ्तार बढ़ाते हुए संगीता को चोदना शुरू किया। संगीता बोली, “आई ग, आई ग, अरे, तेरे हथियार का सिरा तो पूरा अंदर तक जा रहा है। कैसा सख्त है रे। चोद, ऐसे ही चोद। मेरी चूत को भर दे। और बस धक्के मत मार। मेरे बॉल्स दबा, मेरे निप्पल मसल। मेरे होंठ चूस।”
विवेक ने अपनी कोहनियाँ संगीता के दोनों तरफ टिकाईं और अपने शरीर का वजन कोहनियों पर लेते हुए उसके स्तनों को पकड़कर जोर से दबाने लगा, उसके निप्पलों को मसलने लगा। बीच-बीच में नीचे झुककर वह उसके निप्पल चूसने लगा, अपने दाँतों से उसके निप्पलों को काटने लगा। संगीता पूरी तरह भड़क चुकी थी। उसने विवेक को अपने ऊपर खींचकर जोर से गले लगाया।
विवेक समझ गया कि मौसी पूरी तरह गर्म हो चुकी है। वह उसे तेजी से धक्के देने लगा। संगीता अपनी कमर ऊपर-नीचे करके खुद को चुदवाने लगी। उसने अपने होंठ जोर से भींच लिए। उसे असहनीय सुख मिल रहा था। आखिरकार संगीता झड़ गई। उसकी चूत से रस बहने लगा। वह खूब थक चुकी थी।
उसकी विवेक के चारों ओर लिपटी बाँहें ढीली पड़ गईं। उसने अपने हाथ बिस्तर पर रखे और चुपचाप लेटकर विवेक के धक्के खाने लगी। विवेक झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। आखिरकार संगीता न रह सकी और विवेक से बोली, “विवेक, अब झड़ता है कि नहीं? मैं तो झड़ चुकी। जल्दी कर। मैं थक गई रे। अब ताकत नहीं बची। एक बार खाली हो जा बाबा।”
विवेक बोला, “समझ गई ना, मेरे जैसे जवान मर्द से चुदवाने में कैसा मजा आता है? तेरी खाज मिटाई कि नहीं?”
संगीता बोली, “सच है रे बाबा, लेकिन मैं सचमुच थक गई। अब छोड़ दे मुझे। मेरे ऊपर से उतर। अपना नाग अब बाहर निकाल। वरना मेरी चूत फट जाएगी। खून निकलेगा कि क्या, ऐसा लग रहा है। प्लीज, अब छोड़ दे…”
विवेक ने उसे धक्के देना बंद किया, लेकिन लंड वैसे ही अंदर रखकर बोला, “तेरा हो गया, लेकिन मेरा क्या? मुझे झड़ना नहीं है? अब इतनी देर तुझे लगने के बाद मैं क्या हाथ से करके खाली होऊँ? फिर तुझे लगने में क्या मजा? अब मेरा होने तक तुझे ठहरना पड़ेगा। ऐसा नहीं है तो तू ही बता, क्या करना है। मैं हाथ से नहीं करूँगा, यह पक्का।”
संगीता थकी आवाज में बोली, “कितना निर्दयी, दुष्ट है रे तू! पहले तो बाहर निकाल। थोड़ा रुकें। फिर देखते हैं क्या करना है।” विवेक को उस पर दया आ गई। उसने अपना लंड संगीता की चूत से बाहर निकाला और घुटनों पर खड़ा हो गया। संगीता आँखें फाड़कर उसके सख्त, चमकते लंड को देखने लगी।
थोड़ी देर बाद विवेक बोला, “मौसी, मेरा लंड देखा? अभी भी तना है, हिल रहा है। इसे कैसे शांत करेगी?”
संगीता को कुछ सूझ नहीं रहा था। वह बोली, “मुझे कुछ नहीं सूझ रहा। तू ही बता, क्या करना है। वही करूँगी।”
विवेक ने उसके स्तनों को दबाते हुए उल्टा उससे पूछा, “तू ऐसी वक्त क्या करती थी? काका या अपने ठोकू के साथ? वैसे ही मेरे साथ कर।”
संगीता बोली, “छी, ठोकू क्या बोल रहा है। दोस्त तो कह सकता था। लेकिन ऐसी स्थिति मेरे सामने कभी आई ही नहीं, न अब तक, न जब मैं जवान थी। दोनों जल्दी झड़ जाते थे। लेकिन थोड़ी संतुष्टि तो मिलती थी। तू ही बता, क्या करूँ…”
विवेक बोला, “एक उपाय है। तू थोड़ी देर मेरा लंड चूस, मुँह में अच्छे से घुमा। इससे मैं और उत्तेजित होऊँगा और मेरा वीर्य झड़ेगा। लेकिन झड़ेगा तेरी चूत में ही। पहले कभी चूसकर देखा है?”
संगीता बोली, “हाँ, चूसा है। कई बार इनका चूसना पड़ता है। कई बार जब इनका मन नहीं दिखता, तो मैं उनका मुँह में लेकर चूसती हूँ, जब तक तन न जाए। तनने के बाद छोड़ देती हूँ, फिर ये मेरे ऊपर चढ़ते हैं। लेकिन इतना तना हुआ लंड पहले कभी मुँह में नहीं लिया। चल, आज वह भी करके देखती हूँ।”
संगीता उठकर विवेक के सामने बैठ गई। उसने उसके लंड का अगला हिस्सा मुँह में लिया और चूसने लगी। उसकी जीभ उसके लंड पर फिरने लगी। विवेक बोला, “अरे, सिर्फ सुपारा क्या चूस रही है? पूरा लंड मुँह में लेकर चूस। वरना मैं उत्तेजित नहीं हो पाऊँगा…”
संगीता ने धीरे-धीरे उसका लंड मुँह में लिया और मच-मच की आवाज के साथ चूसने लगी। कुछ देर बाद विवेक बोला, “बस। अब उलटी हो, अपनी गांड मेरी ओर करके। पैर फैलाकर रख और नीचे झुककर गांड ऊपर कर। मैं तुझे पीछे से लगाता हूँ। इससे मेरे लंड को अच्छा घर्षण मिलेगा और झड़ जाएगा…”
संगीता बोली, “मतलब, तू मेरी गांड में डालकर करेगा? मैं नहीं करने दूँगी ऐसा। पहले ही बता देती हूँ।” विवेक बोला, “तेरी गांड में नहीं ग, तेरी मुलायम चूत में ही डालूँगा, बस पीछे से। तुझे मजा आएगा, पहले से ज्यादा। पीछे से करते वक्त तेरे बॉल्स भी रगड़े जा सकते हैं…”
संगीता विवेक के कहे मुताबिक उलटी हो गई। विवेक ने उसकी पीठ पर दबाव देकर उसे नीचे झुकाया। फिर उसने अपना लंड उसकी चूत के छेद के पास लाया। उसने उसके कूल्हे हाथ से फैलाए और अपना लंड अंदर डालना शुरू किया। उसकी पहले से गीली हो चुकी चूत में उसका लंड सटकन अंदर चला गया। संगीता का शरीर तन गया। विवेक थोड़ा नीचे झुका और उसके स्तनों को मुट्ठी में लेकर उसे तेजी से धक्के देने लगा। दोनों खूब हिल रहे थे। आखिरकार विवेक का लंड काँपने लगा। वह बोला, “मौसी, दो मिनट में झड़ रहा हूँ।”
संगीता झट से आगे हुई और बोली, “अंदर नहीं रे बाबा, धीरे। मैं कोई गर्भनिरोधक नहीं लेती थी। अगर गर्भ रह गया तो मेरी वाट लग जाएगी।” विवेक ने लंड अपने हाथ में लिया और बोला, “तो इसे मुँह में ले। इसे जकड़न नहीं मिली तो यह झड़ेगा नहीं। मुँह में जोर से जकड़।”
संगीता बोली, “छी, छी, छी… मैं ऐसा नहीं करूँगी। मुझे गंदा लगता है। ढीला लंड मुँह में लेकर चूसना और वीर्य मुँह में लेना अलग बात है।”
विवेक बोला, “तो चूत में झड़ता हूँ।”
संगीता बोली, “नहीं। उससे तो मुँह में लेती हूँ। यह अनुभव भी ले लूँगी।” वह बिस्तर पर पीठ टेककर बैठ गई। विवेक आगे बढ़ा और अपना लंड उसके होंठों के पास लाकर बोला, “हाँ, मुँह खोल और इसे मुँह में ले।” संगीता ने मुँह खोला। विवेक ने लंड उसके मुँह में डाला। उसने अपने गालों को उसके लंड के चारों ओर लपेटा और जीभ से उसे चूसने लगी। विवेक कमर हिलाकर उसे मुँह में चोदने लगा। कुछ ही पल में उसका वीर्य उसके मुँह में पिचकारियाँ मारने लगा। वीर्य खत्म होने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला।
संगीता ने अपने होंठों पर हाथ का पंजा दबाए रखा और झट से उठकर बाथरूम में भागी। कुछ देर बाद मुँह धोकर वह वापस कमरे में आई। विवेक आराम से बिस्तर पर लेटा था। संगीता बोली, “अब जल्दी से तैयार हो जा। तेरी मम्मी कभी भी आ सकती है।”
दोनों ने कपड़े पहने। संगीता ने बिस्तर की चादर ठीक की। फिर दोनों हॉल में आकर बैठे। संगीता ने दोनों के लिए चाय बनाई। चाय पीते वक्त संगीता ने विवेक से पूछा, “मुझे एक बात समझ नहीं आती, तू आज बिल्कुल एक्सपर्ट की तरह लगा मुझे! ब्लू फिल्म्स देखता है क्या?”
विवेक जोर से हँसकर बोला, “मौसी, ऐसी फिल्में देखने के दिन कब के बीत गए। यह प्रैक्टिकल अनुभव है। अरे, मैं एक बहुत अमीर बाप का बेटा हूँ। पापा को बिजनेस में मदद करता हूँ, खूब पैसे कमाता हूँ। इसलिए ढेर सारी गर्लफ्रेंड्स हैं। उनके साथ खूब मजे करता हूँ। और पैसे देकर हाई-प्रोफाइल प्रॉस्स भी मिल जाती हैं। तो हर तरह का अनुभव ले लिया है। लेकिन ये सब जवान लड़कियों के साथ। मध्यम उम्र की औरत के साथ यह पहला अनुभव था। आज मजा आया। परिपक्व औरत के साथ सेक्स में अलग ही मजा है, यह आज समझ आया। अब प्रॉब्लेम नहीं। इच्छा हुई तो तू है ही। तू मेरे साथ रहेगी ना? मस्त है तू। चालीस में भी क्या फिगर मेंटेन किया है!”
संगीता विवेक की बात सुनकर अवाक रह गई। वह बोली, “धन्य है तेरा। लेकिन सच बताऊँ, आज कई सालों बाद मैं तृप्त हुई हूँ। वासना शांत होना क्या होता है, यह आज असल में समझ आया। अब मन में न हो तो भी मैं तुझे ना नहीं कह पाऊँगी। मैं हमेशा तेरे साथ बिस्तर साझा करने की राह देखूँगी। मेरा काम तो हो गया। लेकिन तेरी मम्मी का क्या? वह कैसे शांत होगी?”
विवेक बोला, “उसमें क्या? मैं यह बात गलत नहीं बोल रहा। लेकिन मैं अपनी मम्मी से बहुत प्यार करता हूँ, इसलिए कह रहा हूँ। तू अपने किसी दोस्त को तैयार कर। वह मदद करेगा। मुझे मम्मी को खुश देखना है। मैं कुछ नहीं कहूँगा।”
थोड़ा सोचकर संगीता बोली, “आज हमारी जो बात हुई, वह तूने सुन ही लिया। तेरी मम्मी तैयार हो जाएगी, आखिर उसमें भी भावनाएँ हैं, उसकी भी शारीरिक जरूरतें हैं। सारे सुख हाथ जोड़कर खड़े हैं, लेकिन शारीरिक सुख नहीं है।”
कुछ पल दोनों चुप रहे। अचानक संगीता बोली, “मेरे मन में एक खयाल आया है। थोड़ा अजीब भी है। कैसे बोलूँ, समझ नहीं आता। लेकिन मन की बात बोल ही देती हूँ। मेरा कहना है कि घर में कुछ हो तो बाहर ढूँढने की क्या जरूरत?”
विवेक बोला, “मतलब? मुझे समझ नहीं आया।”
संगीता विवेक की नजर टालते हुए बोली, “देख, तू ही क्यों नहीं अपनी मम्मी को खुश करता? घर की बात घर में रहेगी।”
अब हैरान होने की बारी विवेक की थी। वह बोला, “अरे, यह क्या बोल रही है? वह मेरी माँ है। मेरा छोड़, लेकिन मम्मी बिल्कुल तैयार नहीं होंगी। वह थोड़ी पुराने खयालों वाली है। यह मुमकिन ही नहीं।”
संगीता विवेक के पास और करीब जाकर, उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “मैं तेरी मम्मी को मना लूँगी। वह मेरा काम छोड़ दे। बस तू हाँ कह दे। उसे बाहर भटकने न दे।”
विवेक ने थोड़ा सोचा और बोला, “ठीक है। मुझे अटपटा लगेगा। लेकिन अगर मम्मी खुश होने वाली है, उसे आनंद, संतुष्टि मिलने वाली है, तो मैं तैयार हूँ। लेकिन तू उसे अच्छे से समझा। अगर वह हाँ कहे तो मुझे बता। और हाँ, यह तू ही करवा दे। मुझे या मम्मी को अकेले बिल्कुल नहीं जमेगा।”
संगीता ने विवेक के गाल पर चूमा और बोली, “हाँ, यह मेरी जिम्मेदारी है। और नेक काम में देर क्यों। आज रात ही इसे अंजाम दे देती हूँ। तू बस तैयार रह।”
विवेक ने संगीता को पास खींचा, उसके होंठों को चूमा और बोला, “मैं एकदम तैयार रहूँगा। बल्कि, इसकी बेसब्री से इंतजार करूँगा।”
संगीता बोली, “गुड। हो गया। लेकिन आज जो हमारे बीच हुआ, वह तू अपनी मम्मी को समझ न ले जाना। ऐसा कुछ हुआ ही नहीं, ऐसा वर्तन कर। बाकी मैं संभाल लूँगी।”
उनकी बात चल ही रही थी कि सुशीला घर आ गई। संगीता की ओर देखकर बोली, “संगीता, आज यहीं रुकेगी ना? तुझे तो कारण पता है। प्लीज, रह ना…”
संगीता ने सुशीला का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, “हाँ, आज यहीं डेरा डालूँगी। अभी इन्हें बता देती हूँ। और हाँ, आज रात मैं तुझे एक प्यारा सा, तुझे पसंद आने वाला सरप्राइज दूँगी। तू बहुत खुश हो जाएगी। बस, मैं जो कहूँ, वह सुनना और वैसा करना। ठीक है?”
सुशीला ने सिर हिलाया। विवेक दोस्त के पास जाने का कहकर घर से निकल गया। सुशीला ने उसे कहा, “राजा, ज्यादा देर मत करना। वक्त पर घर आ जाना।”
विवेक “हाँ” कहकर निकल गया। जाते वक्त उसने कहा कि करीब एक घंटे में लौटेगा। इसके बाद क्या हुआ, वह अगले हिस्से में…
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