शुभदा और भावना दोनों बहुत गहरी सहेलियां थीं और हॉस्टल में एक साथ रहती थीं। जहां भी जातीं, हमेशा एक साथ दिखती थीं, एक-दूसरे के बिना उनका काम ही नहीं चलता था। दोनों कॉलेज के दूसरे साल में थीं। साल खत्म होने को था, और परीक्षाएं भी हो चुकी थीं। हॉस्टल के नियमों के अनुसार अब हॉस्टल की रूम खाली करनी थी।
अब दोनों अपने-अपने गांव लौटने की तैयारी में जुट गई थीं। लेकिन भावना को बहुत बुरा लग रहा था कि अब कुछ महीनों तक दोनों एक-दूसरे से नहीं मिल पाएंगी। वह थोड़ा चिड़चिड़ा भी रही थी। शुभदा ने इसे भांप लिया और उसे समझाने लगी, लेकिन भावना किसी भी तरह दुखी ही रही। आखिरकार शुभदा ने एक तरकीब निकाली और कहा, “ऐसा करते हैं ना? तू मेरे साथ मेरे गांव चल!” भावना ने खुशी से उसे गले लगा लिया। भावना ने अपने घर फोन करके बता दिया कि वह शुभदा के साथ उसके गांव जा रही है।
सुबह जल्दी उठकर दोनों कोल्हापुर के लिए गांव जाने निकलीं। पुणे स्टेशन पर ट्रेन तुरंत मिल गई थी। दोनों ने अपनी सुविधा के अनुसार जगह पकड़ ली और मस्त गप्पें मारने लगीं। गप्पों के चक्कर में ट्रेन कब निकल गई, उन्हें पता ही नहीं चला। पांच-छह घंटों में वे कोल्हापुर स्टेशन पहुंच गई थीं। शुभदा ने एक घंटे पहले ही घर पर बता दिया था कि उन्हें लेने आ जाएं। ट्रेन से सामान लेकर वे उतरीं और स्टेशन के बाहर आईं। शुभदा का छोटा भाई सागर उनकी ही राह देख रहा था। उन्हें देखते ही वह आगे बढ़ा और दोनों का सामान लेकर गाड़ी की डिक्की में रख दिया।
शुभदा ने अपने छोटे भाई सागर का परिचय करवाया। गाड़ी में दोनों सहेलियां आपस में खुसर-फुसर कर रही थीं। शुभदा मज़ाक में भावना से कह रही थी, “क्या ग 😊 पसंद आया ना? 😊 मेरा भाई तुझे!” और भावना शरमाकर उसे चुप रहने को कहकर चिकोटी काट रही थी। करीब एक घंटे में वे घर पहुंच गए। घर पहुंचते ही शुभदा ने अपनी मां को जोर से गले लगाया। तब तक सागर उनका सामान उनकी रूम में ले आया। दोनों सफर से बहुत थक चुकी थीं। रात का खाना खाकर दोनों अपनी रूम में सो गईं।
सुबह खिड़की से पड़ने वाली धूप की किरणों ने दोनों को जगाया। उठकर उन्होंने हॉस्टल की तरह ही एक साथ नहाया और बाहर आईं।
दोनों का यह रिश्ता देखकर घरवाले भी हैरान थे, मानो वे सगी बहनें ही हों। कई दिनों बाद घर का नाश्ता मिलने से दोनों तृप्त होकर खा रही थीं। भावना बचपन से शहर में ही पली-बढ़ी थी, उसे गांव के बारे में बहुत कौतूहल था। वह हमेशा सोचती थी कि काश उसका भी एक गांव होता, जहां वह जा सकती। लेकिन उसके माता-पिता ने प्रेम विवाह किया था, जिसके कारण उनके गांव वालों ने उनसे कोई संबंध नहीं रखा, इसलिए उनका गांव से कोई नाता नहीं था।
भावना को गांव देखना था, वह शुभदा के पीछे पड़ गई, “चल ना, गांव घूमकर आते हैं।” शुभदा ने भी हामी भर दी। अगले दो-तीन दिन दोनों गांव में मस्त घूमती रहीं। भावना के लिए यह अनुभव बिल्कुल नया था। गांव का पूरा माहौल उसे बहुत पसंद आया। अगले दिन भावना ने अपनी मां से लाई खूबसूरत साड़ी पहनकर तैयार होकर शुभदा के पीछे पड़ गई। लेकिन आज शुभदा आलस में थी और टालमटोल करने लगी। तभी सागर वहां आया। शुभदा ने सागर को तैयार किया कि वह भावना को खेत, कुआं वगैरह दिखाए, और भावना को उसके साथ जाने को कहा। वैसे भी, भावना को सागर पहली नजर में ही एक अच्छा इंसान और पसंदीदा लग चुका था।
दोनों बाइक से निकले और खेत के पास पहुंचकर बाइक खड़ी कर दी। सागर ने उसे पैदल खेत घुमाया। आज भावना ने सचमुच खेत का अनुभव लिया। सब कुछ उसके लिए नया और रोमांचक था। वह सागर से पूछ रही थी, “यह कौन सा फसल है? इसे कैसे बोते हैं? क्या-क्या करना पड़ता है? नांगरण क्या होता है?” और सारी जानकारी ले रही थी। सागर ने भी उसकी रुचि देखकर सब कुछ विस्तार से बताया। इस सब में दोपहर कब हो गई, पता ही नहीं चला।
सागर और भावना के बीच अब अच्छी दोस्ती हो गई थी। अब वे खेत के कुएं के पास थे। कुआं देखकर भावना इतनी उत्साहित हो गई कि उसका संतुलन बिगड़ा और वह कुएं में गिरने वाली थी। तभी सागर ने उसे पीछे खींचकर बचा लिया। इस हड़बड़ी में दोनों पास ही मौजूद रेत के ढेर पर गिर गए। उसे बचाते समय भावना की साड़ी का पल्लू खिसक गया और वह सागर के ऊपर गिरी, जिससे दोनों बेहद करीब आ गए। भावना के मोहक सौंदर्य ने सागर को मंत्रमुग्ध कर दिया। कुछ पल तक दोनों की नजरें एक-दूसरे में डूब गईं। कुछ क्षण बाद दोनों ने खुद को संभाला और अलग हो गए।
कुछ देर दोनों चुप रहे, फिर सामान्य होकर गप्पें मारने लगे। भावना ने पूछा, “कोई और अच्छा सा स्पॉट है क्या?” सागर ने कहा, “हां… है ना! लेकिन थोड़ा दूर है, लौटने में देर हो जाएगी।” यह सुनकर भावना ने उससे विनती की, “चल ना…”
उसके प्यारे अंदाज को सागर मना नहीं कर सका। दोनों तुरंत उस जगह के लिए निकल पड़े। वहां पहुंचते-पहुंचते चार बज गए थे। वह एक टेकड़ी जैसा इलाका और सपाट पठार था, और एक जर्जर सा झोपड़ा था, जिसे झोपड़ा भी कहना मुश्किल था। उस पठार से बहुत सुंदर नजारा दिख रहा था, बेहद मनोरम दृश्य था। भावना ने इसके लिए सागर का बहुत शुक्रिया अदा किया।
अचानक मौसम बदल गया और बारिश के संकेत दिखने लगे। सागर ने जल्दी निकलने की हड़बड़ी शुरू की, लेकिन उस मनमोहक नजारे को देखकर मंत्रमुग्ध भावना वहां से हटने को तैयार ही नहीं थी। सागर को जिस बात का डर था, वही हुआ। बारिश ने जोरदार हाजिरी लगा दी। अब भावना को होश आया, लेकिन दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। कुछ दूरी पर मौजूद उस जर्जर घर में वे दौड़कर गए, लेकिन तब तक दोनों पूरी तरह भीग चुके थे। इधर घर पर सभी चिंता में थे कि दोनों कहां हैं और इतना वक्त क्यों लग रहा है।
यहां दोनों चप्पल-चप्पल भीग चुके थे। भावना ने साड़ी पहनी थी, और उस चप्पल-चप्पल साड़ी में उसका सुडौल शरीर और भी आकर्षक लग रहा था। वैसे भी वह बहुत सुंदर थी। सागर उसकी इस खूबसूरती को देखता ही रह गया। भावना शरमाकर खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन भीगी हालत में यह उसके लिए मुमकिन नहीं था। सागर ने यह देखकर नजरें फेर लीं।
तभी भावना के सामने एक छिपकली गिरी, जिससे वह चीखकर डर गई और सागर को जोर से गले लग लिया। इस अचानक घटना से सागर ने उसे हिम्मत देने की कोशिश की, लेकिन भावना अभी भी डरी हुई थी और उसने सागर को और जोर से पकड़ रखा था। सागर को उसके दिल की धड़कनें साफ महसूस हो रही थीं। सागर ने उसके चेहरे को दोनों हाथों में लेकर कहा, “मैं हूं ना… और ☺️ बस एक छिपकली थी, इतना डर गई… पागल!” और फिर हंस पड़ा। अब भावना का डर थोड़ा कम हुआ और उसने अपनी पकड़ ढीली की। दोनों एक-दूसरे की नजरों में खो गए थे।
सागर से अब रहा नहीं गया। उसने भावना की पलकों को अपने होंठों से छुआ। इससे भावना का रोम-रोम रोमांचित हो गया। दोनों के लिए यह उनके जीवन का पहला रोमांचक चुम्बन था, और वे इस सुखद अनुभव का आनंद ले रहे थे। अब भावना ने आंखें बंद कर लीं और उत्सुकता से चाहने लगी कि सागर फिर से उसे चूमे। सागर ने भी अपने होंठ उसके होंठों पर रखे, तो भावना ने उत्साह से उसका साथ दिया और आखिरी पल तक इस स्वर्गीय सुख का अनुभव लिया।
सागर अब सिर के नीचे हाथ रखकर शांत होकर सोचने लगा कि जो हुआ, वह सही था या गलत। तभी उसके कानों में भावना की आवाज़ आई, “पागल, चिंता मत कर, तेरे कारण मुझे आज इस सुख की अनुभूति मिली।” यह कहकर उसने सागर की छाती पर सिर रखा, अपने प्यार का इज़हार किया और उसके गाल पर चुम्बन देकर खुद को संभालने लगी। सागर ने भी खुद को संभाला और दोनों बारिश थमने का इंतज़ार करने लगे।
सागर और भावना बारिश रुकने का इंतज़ार कर रहे थे। बारिश का ज़ोर काफी हद तक कम हो गया था, लेकिन पूरी तरह रुकी नहीं थी। भावना सागर के कंधे पर सिर रखकर उसका हाथ अपने हाथ में लिए उस बारिश को देख रही थी, जिसने उसे बहुत कुछ दिया था। वह इसे हमेशा के लिए अपनी आंखों में संजो लेना चाहती थी। लेकिन सागर अलग ही सोच में था—घर पर क्या हुआ होगा? लोग क्या कह रहे होंगे?
बारिश ने मेहरबानी की और अब पूरी तरह थम गई। दोनों ने जल्दी से बाइक की ओर दौड़ लगाई और घर की ओर निकल पड़े। अचानक हुई बारिश से काफी अंधेरा हो गया था और हवा में ठंडक भी थी, जिससे बाइक पर दोनों ठिठुर रहे थे। इधर घर पर माहौल बहुत तनावपूर्ण था। सब चिंता में थे कि कहीं दोनों को कुछ हुआ तो नहीं? और उसमें भावना के होने से तनाव और बढ़ गया था। डेढ़-दो घंटे में दोनों घर पहुंच गए। गाड़ी की आवाज़ सुनते ही घर के सारे लोग दौड़कर बाहर आए। दोनों को सही-सलामत देखकर सबकी जान में जान आई।
सागर और भावना बाइक से उतरकर दबे पांव घरवालों के सामने आए। तभी उन पर सवालों की बौछार शुरू हो गई। भावना को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले। शुभदा दौड़कर भावना के पास आई और बिना कुछ बोले उसे गले लगा लिया। सागर ने धैर्य रखकर सब कुछ बताना शुरू किया। भावना ने उसकी ओर देखा और सुनने लगी। सागर ने उनके बीच के प्रेम प्रसंग को छोड़कर बाकी सब कुछ जस का तस बता दिया। यह सब सुनकर घरवाले शांत और तनावमुक्त हो गए।
इस हड़बड़ी में उन्हें अंदर ले जाना भूल ही गए थे। नहाने का पानी गर्म होने तक जल्दी से उनके लिए अलाव जला दिया गया। अलाव की गर्मी से उनकी ठिठुरन थोड़ी कम हुई। पानी गर्म होते ही दोनों ने जल्दी-जल्दी नहाया। यह सब होने तक रात के नौ बज गए थे। खाने के लिए सब बैठे, और खाते-खाते गप्पों की महफिल कब जम गई और वक्त कब बीत गया, पता ही नहीं चला।
शुभदा और भावना अपनी रूम में जाकर बिस्तर पर लेट गईं। भावना अपने ही ख्यालों में थी, बीच-बीच में शरमा रही थी, हंस रही थी 😊😊। शुभदा सब देख रही थी। भावना के चेहरे पर एक अलग ही चमक दिख रही थी। शुभदा से रहा नहीं गया और उसने चिकोटी काटते हुए पूछ ही लिया, “क्या ग, तुम दोनों के बीच कुछ भलत-सलत तो नहीं हुआ ना?” भावना अपने ख्यालों से बाहर आई और बोली, “ए, कुछ भी तो नहीं!” चिकोटी काटकर बात टालने की कोशिश की। इधर सागर अपनी रूम में आया था। जिस तरह वह भावना के प्यार में धीरे-धीरे डूब गया था, उसी तरह वह बिस्तर पर हाथ फैलाकर लेट गया और उस पहली सुखद और रूमानी याद में खो गया। उसे पता ही नहीं चला कि कब नींद आ गई।
शुभदा और उसके घरवाले हर साल कुलदेवता के दर्शन के लिए जाते थे। इस साल भी उन्होंने सुबह तैयार होकर निकलने की योजना बनाई। लेकिन भावना को बिल्कुल भी जाने की इच्छा नहीं थी। इसका कारण था कि सागर घर पर ही रुकने वाला था। किसी तरह वह सागर के साथ वक्त बिताना चाहती थी। आखिरी पल में भावना ने गाड़ी रुकवाकर चिल्लाया, “रुको, रुको!” और कुछ भूल गया है, ऐसा बहाना बनाकर लेने गई। फिर बहुत चालाकी से गिरने का नाटक किया और जोर से चीखकर पैर में मोच आने का बहाना बनाकर रोने लगी। शुभदा और सागर दौड़कर उसके पास आए और उसे सहारा देकर घर के सोफे पर बिठाया। शुभदा ने पूछा तो वह बोली, “मैं नहीं जा रही, तेरे साथ रुकती हूं।” लेकिन भावना ने कहा, “नहीं, मैं ठीक हूं, चिंता मत कर, सागर है ना!” और सागर को हल्के से आंख मार दी। सागर समझ गया कि वह नाटक कर रही है। फिर सागर ने भी कहा, “मैं हूं ना, घर पर ही हूं, टेंशन मत ले,” और शुभदा को जाने को कहा। शुभदा ने सागर को ध्यान रखने को कहकर निकल गई।
उनकी गाड़ी दूर जाते ही भावना बोली, “मैं कपड़े बदलकर आती हूं,” और रूम में चली गई। काफी देर हो गई, वह नहीं आई, तो सागर उसकी रूम के पास जाकर उसे आवाज देने लगा। कोई जवाब न मिलने पर वह रूम में गया, तो देखा… भावना ने सिल्की गाउन पहना था और उसकी राह देख रही थी। उस गाउन में भावना किसी अप्सरा जैसी लग रही थी, मानो कोई मदनिका उसके सामने खड़ी हो। एक-एक कदम बढ़ाते हुए भावना उसके सामने आई और उसका हाथ पकड़कर अपने दिल पर रखते हुए बोली, “देख…”
“मेरे दिल की धड़कन महसूस हो रही है?” यह कहते ही सागर ने उसे अपनी बाहों में लिया और बोला, “अरे पागल ☺️ वो तो…”
“सागर, सागर,” कहते हुए उसने उसके कंधों से गाउन हल्के से नीचे खींचा और उसके दिल की जगह पर चुम्बन देकर पूछने लगा, “क्या ग? ☺️ अब तो और भी तेज धड़क रहा है!” और उसके गुलाब जैसे कोमल होंठों का स्वाद लेने लगा। भावना ने खुद को कामतृप्ति के लिए उसके हवाले कर दिया और दोनों उस अलौकिक स्वर्गीय सुख का आनंद लेने लगे।
इसके बाद की पूरी कहानी अगले भाग में पढ़ सकेंगे।
4 views